27 June 2020

WISDOM ----- कुटिल की मित्रता और अपना अति अभिमान संकट का कारण बन जाता है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  भारत  का  इतिहास  राजपूतों  की  वीरता , शौर्य  और  उनके  आन - बान   की  गाथाओं  से  भरा  है   l   अपने  वाङ्मय  ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग ' में  आचार्य श्री  लिखते  हैं ----- " यही  सब  कुछ  नहीं  होता  l   उनमें  इन  गुणों  के  सदुपयोग  और  एकता  की  भावना  का  सर्वथा  अभाव   था  l   राजपूत  राजाओं  से  मुगलों  ने   दोस्ती  की   थी  ,  किन्तु   यह  मित्रता  नीतिसंगत  और  व्यवहारिक   नहीं  थी  l   यह  तो  बेर  और  कदली  के  सामीप्य   जैसी  मित्रता  थी  l  उसके  फलस्वरूप  राजपूतों  का   गौरव  तो  कम   हुआ  ही  ,  पराधीनता  का  कलंक  भी  भारत  भूमि  को  ढोना   पड़ा  l 
  राजा  जसवंतसिंह    जोधपुर  के  राजा  थे  ,  बहुत  वीर  और  पराक्रमी  थे  ,  इसका  उन्हें  गर्व  भी  था  l   औरंगजेब  ने  उनसे  मित्रता  की  और  उनकी  वीरता  और  पराक्रम  का  जी  भरकर  लाभ  उठाया  l  राजा  जसवंतसिंह   ने  यह  न  सोचा  कि  क्रूर  और  अन्यायी  औरंगजेब   जब  अपने  पिता  को  कैद  कर  सकता  है ,  भाइयों  का  कत्ल   करा  सकता  है    तो  वह  उनके  परिवार  और  राज्य  पर  संकट  ला  सकता  है  l
    ' कुटिल  की  मित्रता  और  अपना  अति  अभिमान  उनके  परिवार  और  राज्य  पर  संकट  आने  का  कारण  बना  l  "  औरंगजेब  ने   जसवंतसिंह  को  ही  नहीं ,  उनके  पुत्रों  को  भी  धोखे  से   मरवा  दिया  l
  आचार्य  श्री  लिखते  हैं  ---- '  राजा  जसवंतसिंह   के  पास  जो  बल  विक्रम  था    वह  सही  दिशा  में  न  होकर   गलत  दिशा  में  प्रयुक्त  हुआ  l  वह  स्वयं  उनके  लिए , उनके  परिवार  के  लिए   तथा  हिन्दू  जाति   के  लिए   निरुपयोगी  ही  सिद्ध   नहीं  हुआ   वरन  उसका  लाभ  उठाकर   औरंगजेब  ने  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  किया  l   किसी  को  ईश्वर  सम्पदा ,  विभूति   अथवा  सामर्थ्य  देता   है   तो  निश्चित  रूप  से   उसके  साथ   कोई  न  कोई  सद्प्रयोजन  जुड़ा  होता  है  l  मनुष्य  को  यह  समझना  चाहिए  कि   यह  विशेष  अनुदान   उसे  किसी  समाजोपयोगी  कार्य  के  लिए  ही  मिला  l   मनुष्य  को  जागरूक   रहकर  यह  देखन  चाहिए  कि   उसका  लाभ  गलत  व्यक्ति  तो  नहीं  उठा  रहे  l   नहीं  तो  यह  अच्छाइयाँ   भी  राजा  जसवंतसिंह   के  पराक्रम  की  तरह   निरर्थक  चली  जाएँगी   l  "

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   वाङ्मय  ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग ' में  लिखा  है ---- 'पराधीनता  मनुष्य  के  लिए  बहुत  बड़ा  अभिशाप  है  ,  वह  चाहे  व्यक्तिगत  हो  अथवा  राष्ट्रीय ,  उससे  मनुष्य  के  चरित्र  का  पतन  हो  जाता  है  ,  तरह - तरह  के  दोष  उत्पन्न  हो  जाते  हैं  l  इसलिए  कवियों  ने   पराधीनता  को  एक  ऐसी  ' पिशाचिनी ' की  उपमा  दी  है  जो  मनुष्य  के  ज्ञान , मान , प्राण  सबका  अपहरण  कर  लेती  है   l   दूसरों  को  पराधीन  बनाना   संसार  में   सबसे  बड़ा   अन्याय  और  दुष्कर्म  है  l   ईश्वरीय  नियम  तो  यह  है  कि   जो  अपने  से  छोटा , कमजोर , नासमझ  हो   उसको  आगे  बढ़ने  में  ,  उन्नति  करने  में   सहायता  दी  जाये  ,  प्रगति  - क्षेत्र  में  उसका  मार्गदर्शन  किया  जाये    पर  इसके  विपरीत  जो  कमजोर  को   अपना  भक्ष्य  समझते  हैं  ,  छलबल  से  उनके  स्वत्व  का  अपहरण  करने  को  ही   अपनी  विशेषता  समझते  हैं  ,  उन्हें  काम  से  काम  ' मानव ' पद  का  अधिकारी  तो  नहीं  कह  सकते  l   इनकी  गणना  तो  उन  क्रूर  हिंसक  पशुओं  में  ही  की  जा  सकती  है  ,  जिनका  स्वभाव   ही  खूंखार  बनाया  गया  है   और  जो  सबके  लिए  भय  का  कारण  होते  हैं  l '