आज संसार में एक बहुत बड़ी समस्या है कि लोग तनाव और अशांति में जी रहे हैं , इसका एक बहुत बड़ा कारण है --- दिखावा l और जब यह दिखावा स्वास्थ्य के संबंध में किया जाता है तो यह व्यक्ति को शारीरिक और आर्थिक दोनों दृष्टि से कमजोर बना देता है l छोटी सी बीमारी में महंगे अस्पताल में जाना , बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाना भी ' स्टेटस सिम्बल ' हो गया है l अमीरों के लिए यह सब बहुत सरल और सामान्य बात है लेकिन जब माध्यम वर्ग उनकी नक़ल करता है तो हर दृष्टि से खोखला हो जाता है l स्वस्थ रहने के लिए मन की शांति भी बहुत जरुरी है l जितनी हमारी चादर हो उतने ही पाँव पसारने चाहिए l यदि पेट दर्द है तो घर में ही हींग , अजवाइन , हल्दी पानी से फांक लो , सब ठीक हो जायेगा l कब्ज है तो भीगी हुई किशमिश का पानी सहित खाओ , भीगी हुई मुनक्का खाओ l यदि स्किन सम्बन्धी समस्या है तो नीम की कोंपल चबा लो l सूर्योदय के दर्शन करो l खांसी है तो कुनकुने पानी में हल्दी , नमक मिलकर पीना चाहिए l इन छोटी - छोटी तकलीफों के लिए यदि डाक्टर के पास जायेंगे तो शरीर चलता - फिरता मेडिकल स्टोर बन जायेगा l यह जरुरी है कि हम देखें कि हमारे पास क्या है ? हमारे पास सूर्य का प्रकाश है , हम चाहें तो हमारी कृषि इतनी अच्छी हो सकती है कि हम सारे संसार का पेट भर दें l कितने ही देश ऐसे हैं जहाँ प्रकृति ने इसे देने में कंजूसी की है l हमारा विशाल देश है , हर तरह की उपज के लिए विभिन्न गुणों की भूमि है , संसार के हर रोगों के उपचार के लिए हमारे पास प्राकृतिक सम्पदा है , ज्ञान है , सब कुछ है बस ! एक कमी है कि हम जागरूक होना नहीं चाहते , हमारा विवेक सो रहा है l इसका भी इलाज है -- हम ईश्वर से सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें l प्रार्थना में बहुत शक्ति है , ईश्वर सुनते हैं l
31 May 2021
30 May 2021
WISDOM -------
कहते हैं --- ' भगवान के घर देर है , अंधेर नहीं l " एक घटना है ----- आंध्र प्रदेश के दो व्यापारी थे , कैलाश और रमेश l दोनों ने साझे में व्यापार शुरू किया l दोनों में घनिष्ठता थी , धीरे - धीरे व्यापार में बहुत मुनाफा होने लगा l एक बार इतना लाभ हुआ कि उन्हें 80 हजार का चैक कैश कराने बम्बई जाना पड़ा l प्रत्येक को चालीस हजार मिलते l इतनी बड़ी धनराशि देखकर रमेश को लालच आ गया , लोभ - लालच के कारण उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई और उसने चालाकी से भोजन में विष देकर कैलाश को मार दिया और उसकी लाश समुद्र में फिंकवा दी और अस्सी हजार रूपये लेकर घर वापस आ गया l रमेश ने अपने पिता को सब बात बता दी और अपने पिता को मात्र चार हजार रूपये देकर कैलाश के पिता के पास भेजा कि यह कैलाश के हिस्से की राशि है और यह कहलवाया कि दोनों समुद्र में नहाने गए थे तो कैलाश दुर्भाग्यवश समुद्र में बह गया l कैलाश के पिता को व्यापार का इतना ज्ञान नहीं था इसलिए चार हजार रूपये में ही उसको संतोष हुआ और उसने रमेश की इस ईमानदारी के लिए उसे बहुत आशीर्वाद दिया l समय बीतता गया , रमेश का व्यापार खूब चल निकला , उसका विवाह हुआ l घर में खुशियां थी , सम्पन्नता थी l पुत्र का जन्म हुआ , सबका लाडला था , उसका नाम रखा ' विजय ' l अब वह लगभग सोलह वर्ष का हो गया l एक शाम विजय के सिर में भयंकर दर्द हुआ l l रमेश ने उसे बड़े - से बड़े डॉक्टर को दिखाया , किसी दवा से कोई फायदा नहीं हुआ l पुत्र का कष्ट देखकर माता - पिता दोनों बहुत दुःखी थे l रमेश अपने पुत्र विजय को इलाज कराने स्विट्जरलैंड ले गया किन्तु कोई फायदा नहीं हुआ , उसकी हालत और चिंताजनक हो गई l तब विजय ने अपने पिता से कहा कि ---- ' पिताजी आप मुझे अपने देश ले चलिए अब मेरे ठीक होने की आशा नहीं है l ' पुत्र के आग्रह पर वे उसे वापस ले आये l एक शाम विजय लेटा था , उसकी माँ और पिता रमेश दोनों उसी के पास बैठे थे , उसी समय विजय को हँसी आ गई l उसकी हँसी देखकर पिता ने चकित होकर पूछा --- ' बेटा ! इस समय तुम्हे हँसी क्यों आई ? " विजय बोला ---- " इसलिए कि आपने मुझे पहचाना नहीं l पिता बोला --- कैसी बात करते हो बेटा , तू मेरा बेटा है , मैं अच्छी तरह पहचानता हूँ l ' विजय ने कहा --- अच्छी तरह पहचानों और फिर हँस दिया l पिता ने उसे खूब अच्छी तरह देखा तो अवाक रह गया कि अरे ! यह तो वही चेहरा है जो कैलाश को विष खिलाने पर उसकी लाश का था l रमेश घबड़ा गया तब विजय ने कहना शुरू किया --- मैं वही कैलाश हूँ जिसके साथ तुमने विश्वासघात किया l मेरे हिस्से के चालीस हजार में से मात्र चार हजार ही तुमने मेरे पिता को दिए थे , शेष रकम तुम हजम कर गए l उन्ही रुपयों को लेने के लिए मैंने तुम्हारे यहाँ जन्म लिया l मेरे पालन - पोषण और बीमारी में आपने जितना खर्च किया वह सब मेरा कर्ज अदा हो गया अब केवल पांच सौ रूपये शेष रहे वो दाह संस्कार में खर्च कर देना l इतना कहकर विजय चिरनिद्रा में सो गया यह सब सुन कर रमेश को इस सत्य का ज्ञान हुआ कि कर्म -फल से कोई नहीं बचा है , ईश्वर न्याय करते हैं , प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं है l
29 May 2021
WISDOM ------
एक कथा है --- हुसैन नामक एक जौहरी था , व्यापार के लिए वह रोम नगर गया l वहां के मंत्री से उसकी मित्रता हो गई l एक दिन वह मंत्री के साथ घोड़े पर सवार होकर जंगल में जा रहा था l वहां उसे हीरे - मोती की झालरें लगा हुआ एक विशाल तम्बू नजर आया l इस तम्बू के पास विशाल सुसज्जित सेना खड़ी थी l इस सेना ने सेनापति के साथ उस तम्बू की प्रदक्षिणा की और रोमन भाषा में कुछ प्रार्थना कर के चले गए l इसके बाद सफ़ेद वस्त्र पहने कुछ वृद्ध पुरुष आये वे भी प्रदक्षिणा और प्रार्थना कर के चले गए l अब दो - तीन सौ सुंदरियाँ जवाहरात से भरे थालों को हाथ में लेकर आईं और सबकी तरह तम्बू की परिक्रमा कर के और प्रार्थना कर के चलीं गईं l सबसे अंत में उस देश का राजा अपने मंत्रियों सहित आया और तम्बू के भीतर गया l थोड़ी देर बाद बाहर आया और भरे हृदय से कुछ प्रार्थना कर चला गया l हुसैन को यह सब देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ , उसने मंत्री से इसका रहस्य पूछा l मंत्री ने बताया ---- हमारे राजाधिराज के एक बड़ा सुन्दर और गुणवान पुत्र था , राजा को उससे बड़ा प्रेम था l एक दिन अचानक उसका देहांत हो गया और बादशाह शोक सागर में दुब गया l इस तम्बू में उसी शहजादे की कब्र बनी है l प्रतिवर्ष कुमार की मृत्यु तिथि के दिन बादशाह सेना और परिवार सहित यहाँ आता है और कब्र की प्रदक्षिणा कर के चला जाता है l उन सबने रोमन भाषा में जो प्रार्थना की उनका आशय यही है कि अगर सेना की वीरता से , विद्वानों के ज्ञान से , धन - सम्पति आदि किसी शक्ति से संसार से चले गए व्यक्ति को वापस बुला सकना संभव होता तो हम तुमको अवश्य बुला लेते l पर किसी प्रकार ऐसा हो सकना असंभव है , इस कारण हम तुम्हारे लिए शोक ही प्रकट कर सकते हैं l
28 May 2021
WISDOM -------
इस संसार में अच्छाई और बुराई दोनों का अस्तित्व है l अच्छाई अपने आप में इतनी मजबूत होती है कि उसे संसार में फैलने के लिए किसी सहारे की जरुरत नहीं होती l अच्छाई का मार्ग कठिन है इसलिए इसे फैलने में थोड़ा वक्त लगता है l लेकिन बुराई के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बुराई चाहे किसी छोटी सी संस्था में फैले या राष्ट्र में या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैले , यह बिना किसी मजबूत सहारे के नहीं फ़ैल सकती l बुराई की राह बहुत सरल है , एक मजबूत सहारा मिलते ही यह बड़ी तेजी से फैलती है और अपने को सहारा देने वाले को डुबाकर ही दम लेती है l ------ कहते हैं जो कुछ महाभारत में है वही इस धरती पर है l महाभारत के लिए कहा जाता है -- न भूतो न भविष्यति ' l और इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से दुर्योधन उत्तरदायी था l भगवान कृष्ण के समझाने से भी वह नहीं समझा लेकिन दुर्योधन ऐसा क्यों था ? बुराई का एक जीता -जागता , नकारात्मक शक्तियों का पुंज ' शकुनि ' था जो दुर्योधन की माता गांधारी का भाई था , उसने अपनी नकारात्मक शक्तियों के विस्तार के लिए दुर्योधन के माध्यम से धृतराष्ट्र का सहारा लिया l धृतराष्ट्र अंधे होने के साथ मोहान्ध भी थे , दुर्योधन की किसी भी बात को वो इनकार नहीं करते थे l इसी का फायदा शकुनि ने उठाया , वह निरंतर दुर्योधन के मन में पांडवों के विरुद्ध विष के बीज बोता रहा l पांडवों के विरुद्ध जितने भी षड्यंत्र रचे गए , वे सब शकुनि के दिमाग की उपज थे l शकुनि के भीतर जो इतनी नकारात्मकता थी , वह उसकी कुंठा थी , एक बात उसके हृदय में घाव की तरह थी कि उसकी बहन गांधारी का विवाह जिससे हुआ वह अंधे हैं l अपने इस घाव को वह दुर्योधन को युवराज बनाकर धोना चाहता था l कहीं कुंठा , कहीं बदले की भावना नकारात्मक शक्तियों को आमंत्रित कर लेते हैं l शकुनि स्वयं मारा गया , कौरव वंश समाप्त हो गया l हमारे महाकाव्य हमें जीना सिखाते हैं , यदि हमारे पास शक्ति है , वैभव है तो जागरूक रहें , बुराई को पनाह न दें l
27 May 2021
WISDOM ------
एक बार जिज्ञासु अग्निवेश ने आचार्य चरक से पूछा ----- " संसार में जो अगणित रोग पाए जाते हैं , उनका कारण क्या है ? " आचार्य ने उत्तर दिया ---- " व्यक्ति के पास जिस स्तर के पाप जमा हो जाते हैं , उसी के अनुरूप शारीरिक और मानसिक व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं l प्रकृति के सामूहिक दंड भी मनुष्य के सामूहिक पतन के दुष्परिणाम होते हैं l उच्च स्तरीय आस्थाओं की अवहेलना , विलासी , बनावटी और अहंकारी गतिविधियाँ अपनाने , चिंतन में दुष्टता और आचरण में भ्रष्टता के कारण आंतरिक तनावों में वृद्धि हुई है l आज अधिसंख्यक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के मानसिक रोग से ग्रस्त पाए जाते हैं l शरीर और मन परस्पर गुंथे हुए हैं l शारीरिक रोग कालांतर में मानसिक और मानसिक रोग शारीरिक रोग बन जाते हैं l
26 May 2021
WISDOM ------ स्वयं से प्यार करें
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था ---- सर्वप्रथम हम स्वयं से प्यार करें l ' --- जब हम स्वयं से प्रेम करेंगे अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखेंगे तभी हम अपने देश , अपनी प्रकृति , सम्पूर्ण पर्यावरण से प्रेम कर सकेंगे और उसके उत्थान के लिए प्रयास करेंगे l इसके विपरीत हम जिस मिटटी में पैदा हुए , उस मिटटी ने हमें जो उपहार दिए यदि हम उनकी कद्र नहीं करते , दूसरे को देख अपने ही पहचान को भूल जाते हैं तो ऐसे में हम अपने व्यक्तित्व को अपने ही हाथों मिटाते हैं और तब नकारात्मक शक्तियां अपना स्वार्थ सिद्ध करती हैं l ऐसे में न केवल मनुष्य बल्कि उसके अस्तित्व से जुड़े सभी क्षेत्र एक प्रयोगशाला बन जाते हैं l मार्टिन लूथर किंग एक प्रश्न सभी से पूछा करते थे ---- ' अपनी आत्मा अथवा चरित्र को दांव पर लगाकर यदि सारे संसार की दौलत हमारे सामने रख दी जाये तो उसका क्या उपयोग होगा ? वे कहते थे --- मानव जीवन भले ही क्षण भंगुर हो पर उसे अविवेक के साथ नहीं बिताना चाहिए l इस संसार को जीने योग्य वे ही व्यक्ति बना सकते हैं जो सत्य के प्रति अनुरागी , न्यायप्रिय तथा त्यागी वृत्ति के हों l ' यदि हम किसी अन्य देश के धर्म , शिक्षा , चिकित्सा , रहन -सहन , वेशभूषा , संस्कृति के श्रेष्ठ और प्रामाणिक तत्वों को अपनाते हैं तो यह सभ्यता और संस्कृति का श्रेष्ठ और अनूठा मिलन होगा लेकिन यदि हम जागरूक नहीं है , अंधानुकरण करते हैं तो फिर ' न घर के न घाट के ' जैसी स्थिति हो जाएगी l
25 May 2021
WISDOM------
आज संसार में अशांति का सबसे बड़ा कारण है --- मत्स्य न्याय l जो शक्तिशाली है वह चाहता है कि केवल उसका ही अस्तित्व रहे , शेष सब उसकी कठपुतली बन कर रहें l यह स्थिति छोटे से बड़े स्तर तक है l इसी का परिणाम है कि हम अपनी ही संस्कृति को भूल रहे हैं l किसी भी राष्ट्र के उत्थान के लिए जरुरी है कि लोग स्वाभिमानी हों , उनमे विवेक हो l हम हमेशा आपस में ही लड़ते रहे इसलिए दूसरे देश की शिक्षा , चिकित्सा , संस्कृति हम पर हावी हो गई l स्वार्थी तत्व तो हमेशा से ही अपनी दुकान बचाने में लगे रहते हैं l हर व्यक्ति जागरूक होकर अपने जीवन को अच्छा बनाये l आज के समय में जब चारों ओर स्वार्थ , भ्रष्टाचार जैसी नकारात्मक प्रवृतियां हैं , यह जरुरी है कि हम किसी लालच में नहीं आएं l बहेलिया लालच देकर ही पक्षियों को अपने जाल में फँसा लेता है l
WISDOM ------- मानवीय देह को अमर बनाने के प्रयत्न इस संसार में अति प्राचीन काल से ही हो रहे हैं लेकिन क्या मनुष्य ईश्वरीय विधान को बदल सका है ?
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' अमृत की खोज के साथ ' मृत्यु ' की खोज स्वयं होती चली जाती है l जिस प्रकार आजकल के वैज्ञानिकों ने यूरेनियम धातु के प्रयोग से उस 'अणु शक्ति ' को प्राप्त कर लिया है , जिससे आप चाहे तो संसार में प्रलय कर दें और चाहें इस पृथ्वी को सुवर्ण मंडित बनाकर मनुष्यों को देवताओं के सामान अजर - अमर बना दें l उसी प्रकार प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों ने भी पारद के ऊपर प्रयोग कर के ऐसी विधियां निकाली थीं , जिनसे तांबे का सोना बनाना संभव था , साथ ही मनुष्य अपने भौतिक शरीर को पूर्णत: नहीं तो अधिकांश में अमर भी बना सकता था l " आचार्य श्री आगे लिखते हैं --- ' महत्वपूर्ण बात यह है कि सुवर्ण बनाने के लिए औषधियों का प्रयोग तांबा आदि धातुओं पर किया जाता था , पर अब अमृत की खोज करने के लिए तो उनका प्रयोग मानव देह पर ही किया जाना आवश्यक था l ' ' अमृत ' की खोज अत्यंत प्राचीन काल से ही आकर्षक विषय है , केवल भारत ही नहीं अन्य देशों में भी लोग इस खोज के लिए पागल होकर घूमते रहे हैं l l " अब यह वैज्ञानिक के हृदय की संवेदना पर निर्भर है कि वह अमृत की खोज के लिए अज्ञात जड़ी - बूटियों आदि अनेक अज्ञात पदार्थों का सेवन और उनके प्रभाव की जांच वह स्वयं की देह पर करता है या निर्दोष और अज्ञानी मनुष्यों की देह पर करता है l प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक सिद्ध नागार्जुन ने संसार की कायापलट करने के लिए ' अमृत ' की खोज करने का निश्चय किया और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक बड़ी प्रयोगशाला बनाकर जड़ी - बूटियों द्वारा पारद -संबंधी परीक्षण आरम्भ किये l सिद्ध नागार्जुन सौराष्ट्र के अंतर्गत ' ढांक ' नामक नगर के अधिपति थे , पर उनकी रूचि राज्य शासन की अपेक्षा स्वर्ण और अमृत की खोज की तरफ विशेष रूप से थी l उन्हें इसमें बहुत सफलता भी मिली l किसी घटिया धातु को स्वर्ण में बदल देना उनके लिए साधारण बात थी l इसलिए जब उनके मंत्रियों ने उनसे कहा --- महाराज ! आपने अपनी समस्त शक्तियों को ' अमृत ' की खोज में लगा दिया है इससे राज्य -कार्य की उपेक्षा हो रही है प्रादेशिक सामंत स्वेच्छाचारी हो गए हैं , उनने कर देना बंद कर दिया है और विदेशियों के आक्रमण का भय उत्पन्न हो गया है l ' मंत्रियों की बात सुनकर नागार्जुन ने कहा ---- ' जिन दो विपत्तियों का भय तुमने प्रदर्शित किया , उनकी मुझे कोई चिंता नहीं है l यदि सामंतों से कर मिलना बंद हो जाये तब भी मेरा खजाना स्वर्ण से भरा रह सकता है और यदि कोई विदेशी मेरे राज्य पर आक्रमण करने का साहस करेगा , तो मैं सेना के बजाय थोड़ी सी औषधि से ही उसको नष्ट करने की सामर्थ्य रखता हूँ l " मंत्रियों के आग्रह पर उन्होंने युवराज के मस्तक पर राजमुकुट रख दिया , उसे गद्दी पर बैठाकर स्वयं निश्चिन्त होकर परिक्षण में लग गए l नागार्जुन ने अपने प्रयोग के लिए दूर देशों और पर्वतों से तरह - तरह की नई जड़ी बूटियाँ इकट्ठी करनी आरम्भ की l पर अज्ञात जड़ी - बूटियों का सेवन और उनके प्रभाव की जांच करना खतरे से खाली न था इसलिए नागार्जुन उनका प्रयोग अपनी देह पर करने लगे l उन्होंने अपने शरीर को साधना द्वारा इतना योग्य बना लिया कि परिक्षण के भले बुरे प्रभाव को सहन कर सकें , शस्त्र और विष आदि से उन्हें कोई हानि न हो l उनकी सहन शक्ति चरम पर पहुँच गई थी l एक दिन युवराज उनकी प्रयोगशाला में आया , उन्होंने अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया और प्रयोगशाला को दिखाते हुए कहा ---- " भगवान धन्वन्तरि की कृपा से अमर बनाने वाली समस्त औषधियां मिल गई हैं और अब केवल उचित मात्रा में विधिपूर्वक उनका योग करना ही शेष रह गया है l भगवान ने चाहा तो संसार शीघ्र ही दरिद्रता और मृत्यु के भय से मुक्त होगा l " अपने पिता की सफलता से युवराज प्रभावित हुआ किन्तु उसे यह भय हो गया कि इस कार्य के बाद नागार्जुन उससे राज्य सत्ता वापस लेंगे l उसने अपने इस भय को अपने घनिष्ठ मित्रों से कहा तो उन्होंने उसे इस भय से छुटकारा पाने की सलाह दी l अंत में सबने षड्यंत्र कर ऐसी योजना बनाई जिससे नागार्जुन अपनी प्रयोगशाला सहित विनष्ट हो गया l नागार्जुन की महान वैज्ञानिक खोजों का प्रमाण उसके ' रसोद्धार तंत्र ' नामक ग्रन्थ में मिलता है , जिसे आज भी आयुर्वेद जगत में अद्वितीय माना जाता है l जो लोग पारद की भस्म बनाने में सफल हुए , वे उसके प्रयोग से अमर नहीं तो दीर्घ जीवन की प्राप्ति में समर्थ हो सके l
24 May 2021
WISDOM------
जब मनुष्य पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तब उसे साक्षात् भगवान भी समझाने आएं तो वह नहीं समझता l इस दुर्बुद्धि में वह अपना सुखी - सुन्दर जीवन भूलकर कष्ट , आपदा और अंत में मृत्यु को स्वयं ही चुन लेता है l हाय ! री दुर्बुद्धि ! यह कथन हर युग में सत्य है l रावण को मंदोदरी ने विभीषण ने कितना समझाया कि माँ सीता साक्षात् जगदम्बा हैं , ईश्वर ने स्वयं धरती पर राम के रूप में जन्म लिया है , तुम उनसे क्षमा मांगो लेकिन रावण ने किसी की नहीं सुनी l हनुमानजी और अंगद भी गए उसे समझाने पर उसके सिर पर तो मृत्यु सवार थी l इसी तरह महाभारत में --- भगवान कृष्ण स्वयं दुर्योधन को समझाने गए कि पांच गाँव ही दे दो लेकिन वो नहीं माना और महाभारत होकर रहा l इन सब के मूल में देखें तो एक बात स्पष्ट है कि व्यक्ति के पास जो ईश्वर ने दिया है वह उसका महत्त्व नहीं समझता , जो दूसरे की है उस पर ललचाता है l रावण के पास एक से एक सुन्दर रानी - महारानी की कमी नहीं थी लेकिन उसकी नजर सीताजी पर थी l दुर्योधन के पास हस्तिनापुर का विशाल साम्राज्य था लेकिन उसे पांडवों का इंद्रप्रस्थ इतना अच्छा लगा कि अब वह उन्हें सुई की नोक बराबर भूमि भी नहीं देना चाहता l यही स्थिति वर्तमान में है ---- संसार में विभिन्न देश हैं हर देश की अपनी संस्कृति , अपनी चिकित्सा है l हमारे पास भी अपनी संस्कृति , अपनी चिकित्सा पद्धति , वेद , उपनिषद में दिए गए जीवन जीने के सूत्र आदि बहुमूल्य ज्ञान - सम्पदा है लेकिन दुर्बुद्धि ऐसी कि हम उसका महत्त्व नहीं समझते l दुर्बुद्धि के साथ यदि मानसिक गुलामी भी हो , हम दूसरे को अपने से श्रेष्ठ समझें तो परिस्थिति विकराल हो जाती है l आज वैश्वीकरण के युग में हमारी बुद्धि हंस जैसी हो l कहते हैं हंस को दूध दो तो वह दूध पी लेता है , उसमें का पानी छोड़ देता है l इसी तरह हम करें , अपना महत्त्व समझें दूसरे का जो श्रेष्ठ है उसे स्वीकार करें , भेड़ -चाल न चलें l ऐसी विवेक - बुद्धि के लिए हम ईश्वर से सद्बुद्धि की प्रार्थना करें l एक प्रार्थना हम उन देशों के लिए भी करें जिनके पास शक्ति और वैभव और श्रेष्ठता का अहंकार भी है , कि उन्हें भी सद्बुद्धि आये -----------
23 May 2021
WISDOM------ भगवान तीन रूप में मनुष्य को दर्शन देते हैं ---- सर्जक , पोषक और संहारक
22 May 2021
WISDOM -------
इमर्सन का कहना है ---- " आओ हम चुप रहें , ताकि फरिश्तों के वार्तालाप सुन सकें l " यदि हम स्वस्थ रहना चाहते हैं तो हमें कुछ देर मौन रहने की जरुरत है l शान्त और एकाग्र मन से ही हम प्रकृति के सन्देश को सुन सकते हैं , समझ सकते हैं l ईश्वर ने इस संसार को बनाया और उसे अपनी इस रचना से बहुत प्रेम है l प्रकृति ने हमें स्वस्थ रहने के लिए सब कुछ दिया लेकिन स्वयं को बुद्धिमान समझने के कारण हम उसके महत्व को समझ नहीं रहे हैं l जिन पांच तत्वों से हमारा शरीर बना है , अंत में वह उसी में विलीन हो जाता है l यह सत्य सम्पूर्ण संसार के लिए है लेकिन इनके आधार पर जो जलवायु है , पर्यावरण है वह सब जगह भिन्न - भिन्न है और लोगों की आकृति , रंग रूप में भी इसी कारण अंतर होता है l यह ईश्वरीय व्यवस्था है कि हम जिस मिट्टी में पैदा हुए उसकी अपनी एक विशेषता है इसलिए उसी के अनुरूप कृषि पदार्थ , चिकित्सा , सौंदर्य प्रसाधन , खान- पान , वेशभूषा हमारे लिए उपयुक्त होगी l यदि हम यह सोचें कि पूरी दुनिया के लिए एक जैसा खान - पान , एक जैसी वेशभूषा , एक ही चिकित्सा पद्धति हो तो कोई भी स्वस्थ नहीं रह सकेगा l विद्वानों का कहना है --- एक पौधा जो ब्रिटेन या अमेरिका में रोपा गया , वह वहीँ की जलवायु में फलेगा - फूलेगा यदि हम उसे वहां से लाकर किसी दूसरी जलवायु के क्षेत्र में लगाएंगे तो वह सूख जायेगा और जहरीला हो जायेगा l ' मानवीय मूल्यों , नैतिकता के नियम सम्पूर्ण संसार के लिए एक जैसे हों l
21 May 2021
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- मर्यादा में रहने पर शक्ति , विजय , कीर्ति और विभूतियाँ उपलब्ध होती हैं l उनसे विचलित होने पर अनिष्ट होता है l रावण आतंक और आसुरी शक्तियों का प्रतिनिधि था l सामान्य रूप से अधिक शक्ति का अर्जन अहंकार को जन्म देता है l शक्ति का प्रदर्शन इसी अहंकार और दर्प का परिणाम है , रावण इसी का जीता - जागता रूप था l " आचार्य श्री लिखते हैं ----- ' रावण ने शक्ति का अर्जन बहुत किया था , परन्तु शक्ति के अर्जन के साथ वह उसका लोक कल्याण के लिए उपयोग करना भूल गया l वह अपने अहंकार के प्रदर्शन और मर्यादाओं को छिन्न - भिन्न करने में लग गया और इसीलिए उसका अंत मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के हाथों हुआ l आचार्य श्री लिखते हैं --- ' लगता है रावण रूपी आसुरी तत्व मरकर आज सूक्ष्म रूप में सभी के भीतर तांडव नर्तन करने में जुट गया है और यही कारण है कि मानव मर्यादाओं का उल्लंघन करने में अपने को अहोभागी मान रहा है l मानवीय मर्यादाओं के उल्लंघन के कारण आज मानव समाज की जितनी दुर्दशा हुई है , संभवत: उतनी कभी देखी नहीं गई l " यदि सद्बुद्धि आ जाए तो रूपांतरण होने में देर नहीं लगती l शक्ति और वैभव के बल पर आप लोगों को भयभीत कर झूठा सम्मान पा सकते हैं लेकिन जिनके पास अकूत सम्पदा है , शक्ति है वे इसका उपयोग शक्ति प्रदर्शन और यश लूटने में न कर के सच्चे हृदय से विभिन्न गरीब देशों के निर्धनता और भूख से मरते हुए लोगों के कल्याण के लिए , उनकी पीड़ा को दूर करने के लिए करें तो इसी जन्म में लोग उन्हें देवता मान कर पूजने लगें l
20 May 2021
WISDOM ------
जब संसार में आसुरी शक्तियां प्रबल हो जाती हैं तब ऐसे ही चारों ओर हाहाकार मचता है l आसुरी शक्तियों का प्रमुख लक्षण यही है कि वे बेगुनाह को , निर्दोष पर अत्याचार करती हैं l जैसे रावण , स्वयं को राक्षसराज रावण कहता था , अपनी ' सोने की लंका ' की चाहत में उसने दसों दिशाओं में आतंक फैलाया , ऋषियों का , बेगुनाहों का खून बहाया l ' महाभारत ' एक परिवार , एक खानदान के बीच की लड़ाई थी जिसमे विभिन्न राजाओं ने किसी पक्ष के समर्थन में युद्ध में भाग लिया l यहाँ आसुरी तत्व नहीं थे , युद्ध के नियम थे जैसे सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं होगा , निहत्थे पर वार नहीं होगा , शत्रु पर पीछे से वार नहीं होगा , शत्रु को चुनौती देने , ललकारने के बाद ही उससे युद्ध होगा अदि अनेक नियम थे l समय - समय पर उनका उल्लंघन भी हुआ , लेकिन वह अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए युद्ध था l भीम और हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच जो मायावी शक्तियां जानता था , जब अपनी मायावी शक्ति से कौरव सेना को नष्ट करने लगा तब कर्ण ने इंद्र द्वारा दी गई शक्ति से उसका वध किया l युद्ध चाहे किसी भी युग का हो , यदि उसमे महिलाएं , मासूम बच्चे और बेगुनाह लोग मारे जाते हैं तो वह युद्ध आसुरी है l असुर के सिर पर बड़े सींग और भयावह आकृति नहीं होती , असुरता एक प्रवृति है जो निर्दोष लोगों को सताने और उनका खून बहाने से ही तृप्त होती है l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' इस संसार में दुष्टता कभी भी स्थिर होकर नहीं रह सकी , असुरता से देवत्व की आयु अधिक है l ' जब संसार में सन्मार्ग पर चलने वाली शक्तियां एकजुट होंगी तब असुरता हारेगी , अंधकार दूर होगा और एक नई सुबह होगी l
19 May 2021
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' कुटिल की मित्रता और अपना अति अभिमान स्वयं पर और अपने परिवार तथा राज्य पर संकट आने का कारण है l ' इतिहास से हमें शिक्षा मिलती है कि मित्रता भी सोच - समझ करनी चाहिए l ------ औरंगजेब अपने भाइयों को मारकर और पिता को कैद कर दिल्ली के रक्त सने सिंहासन पर बैठा l ऐसे अन्यायी औरंगजेब ने जब जोधपुर के राजा जसवंतसिंह से मित्रता का हाथ बढ़ाया तो उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया l जसवंतसिंह ने यह सोचने का प्रयास ही नहीं किया कि यह क्रूर , निर्दयी , अन्यायी औरंगजेब जब अपने पिता को कैद कर सकता है , भाइयों को क़त्ल करवा सकता है तो समय आने पर उन्हें भी दगा दे सकता है l उनके परिवार पर संकट ला सकता है , उनका राज्य हथिया सकता है l उन्होंने औरंगजेब के दरबार में रहना स्वीकार कर लिया l जसवंतसिंह की वीरता और पराक्रम से औरंगजेब ने जी भर के लाभ उठाया l जसवंतसिंह ने उसके लिए कठिन से कठिन संग्राम जीते l औरंगजेब शंकालु प्रवृति का था , वह भीतर ही भीतर उनसे भयभीत रहता था और मन में बहुत ईर्ष्या करता था l उसने जसवंतसिंह को और उसके पुत्रों को धोखे से मरवा दिया , जोधपुर का राज्य भी हथिया लिया l उनकी रानी और नवजात शिशु को दुर्गादास राठौर नामक स्वामिभक्त वीर ने बड़ी कठिनाई से बचा लिया अन्यथा उनका वंश ही समाप्त हो जाता l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' राजा जसवंतसिंह के पास जो बल विक्रम था वह सही दिशा में न होकर गलत दिशा में प्रयुक्त हुआ l वह स्वयं उनके लिए , उनके परिवार के लिए तथा हिन्दू जाति के लिए निरुपयोगी सिद्ध हुआ और उसका लाभ औरंगजेब ने उठाकर अपना स्वार्थ सिद्ध किया l ये ऐतिहासिक घटनाएं हमें शिक्षा देती हैं कि हम जागरूक हों , हमारी योग्यता का लाभ गलत व्यक्ति तो नहीं उठा रहे l नहीं तो ये अच्छाइयाँ भी राजा जसवंतसिंह के पराक्रम की तरह निरर्थक चली जाएँगी l "
18 May 2021
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " केवल स्वार्थ और मिथ्याभिमान से प्रेरित होकर किया गया काम कितना ही बड़ा क्यों न हो , न तो वह उस व्यक्ति को ही सुखी और संतुष्ट कर सकता है और न मानव समाज को ही कुछ दे सकता है l " घटना उस समय की है जब सिकंदर फारस देश पर आक्रमण करने जा रहा था , सहसा वह एक स्थान पर रुक कर घोड़े से उतर गया और सरदारों से कहा --- सेना का पड़ाव यही डाल दो , मेरी तबियत कुछ ख़राब हो रही है l जब तक ठहरने की व्यवस्था हुई सिकन्दर पेट और हृदयस्थल में प्रचंड पीड़ा से तड़पने लगा l सिकन्दर के साथ यूनान से कई योग्य हकीम आये थे , शरीर और नाड़ी की परीक्षा की , अच्छी से अच्छी दवा दी , सभी हताश हो गए l विश्व विजय का स्वप्न देखने वाला शक्तिमन्त सिकन्दर मर रहा है , विवश और असहाय है और सब अपने - अपने हित की बात सोच रहे थे l आचार्य श्री लिखते हैं ----- ' यदि सिकन्दर ने अपनी शक्ति जनहित और संसार में सुख - शांति की वृद्धि में लगाई होती तो उसकी सहायता की जोखिम से लोग डरते नहीं बल्कि अपने प्राण देकर भी उसे बचाने का प्रयत्न करते l राज - पद और उस पर भी अनीति तथा आतंक से दूषित राज - पद ऐसा ही प्रतारणा पूर्ण होता है कि लोग न तो उस पर विश्वास करते हैं और न ही यह विश्वास रखते हैं कि वह उन पर विश्वास कर रहा होगा l ------------------- जब सिकन्दर के जीवन की अंतिम घड़ी आ गई तो उसने अपने एक सेनापति को बुलाया और कहा --- " देखो मित्र ! जब मेरी अर्थी बनाई जाए तो मेरे दोनों हाथ अर्थी से बाहर निकाल देना ताकि दुनिया वाले यह जान सकें कि मैं कुछ नहीं ले जा रहा हूँ और उसके दोनों हाथ खाली थे l " ' लाया था क्या सिकन्दर , दुनिया से ले चला क्या ? ये हाथ दोनों खाली , बाहर कफ़न से निकले l '
WISDOM --------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' जहाँ राह गलत होती है वहां जीवन के सार्थक होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता l सिकंदर के जीवन और व्यक्तित्व से बहुत कुछ सीखा जा सकता है l सिकन्दर का सपना था विश्व विजय करने का l विश्व विजय का स्वप्न देखने वाला अजेय योद्धा एक साधारण से जंतु मच्छर का सामना नहीं कर सका l बेबीलोन में जाकर उसकी मृत्यु मलेरिया से हुई l " संसार में आकर्षण इतना है कि हर व्यक्ति चाहे ऊंच हो या नीच , वह अमीर हो या गरीब , स्वस्थ हो या अस्वस्थ --- सब जीना चाहते हैं l कोई भी युद्ध और दंगों के , किसी आपदा और महामारी के कारण मरना नहीं चाहता l लेकिन संसार के चन्द उन्मादी , अहंकारी और अति महत्वकांक्षी लोगों की वजह से सामान्य बेगुनाह प्रजा , मासूम बच्चे जिन्होंने अभी संसार देखा ही नहीं , मारे जाते हैं l आज संसार में समस्याएं इतनी भयावह इसलिए हैं कि क्योंकि लोगों पर स्वार्थ हावी हो गया है l ' मृत्यु अटल सत्य है ' इससे कोई नहीं बचा है इसलिए ' जियो और जीने दो ' का मन्त्र लेकर जीवन को सार्थक करें l
17 May 2021
WISDOM -------
कायरता मनुष्य का सबसे बड़ा कलंक है l कायर व्यक्ति ही संसार में अन्याय , अत्याचार तथा अनीति को आमंत्रित किया करते हैं l संसार के समस्त उत्पीड़न का उत्तरदायित्व कायरों पर है l ' शक्ति और वैभव के अहंकार के कारण संसार को अनगिनत बार युद्ध की त्रासदी झेलनी पड़ी l पहले युद्ध होते थे तो राजा स्वयं हाथी पर बैठकर युद्ध का संचालन करते थे l राणा सांगा के शरीर पर अस्सी घाव हो गए , लेकिन वे युद्ध के मैदान से पीछे नहीं हटे l महाराणा प्रताप , पृथ्वीराज चौहान आदि अनेक वीर राजाओं की वीरगाथा से इतिहास भरा पड़ा है l लेकिन अब विज्ञानं ने युद्ध का स्तर बदल दिया l आचार्य श्री कहते हैं ---- ' अहंकारी एक प्रकार का उन्मादी होता है l " जिनके उन्माद की वजह से युद्ध होते हैं , अनेक मुसीबतें आती हैं वे सुरक्षा गार्ड से घिरे अपने महलों में सुरक्षित रहते हैं और निर्दोष प्रजा , मासूम बच्चे जिनका कोई अपराध नहीं है बेमौत मारे जाते है l वीरता की नई परिभाषा विज्ञान की देन है l
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पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " वाक् चातुरी और छल -बल से व्यक्ति को भले ही अपने वश में कर लिया जाये , पर हृदय अवश ही रहता है , किसी के मन को अपने वश में नहीं किया जा सकता है , जो और ज्यादा अनर्थ उत्पन्न करता है l " महाभारत का प्रसंग है ---- महाबली शल्य महाराज पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री के भाई थे और युद्ध में पांडवों का सहयोग करना चाहते थे किन्तु दुर्योधन के छल - बल और वाक् चातुर्य से वे वचनबद्ध हो गए और उन्हें कौरवों के साथ सहयोग करने को विवश होना पड़ा l वे कर्ण के सारथि बने , शल्य सोच रहे थे कि पूरी तरह से अन्याय को सहयोग देने की अपेक्षा यह विवशता है l किस तरह मैं धर्म और न्याय का समर्थन करूँ ? उन्हें अपने वचनबद्ध होने का बड़ा पश्चाताप था l उन्हें कोई उपाय समझ में नहीं आ रहा था कि उनके वचन की भी रक्षा हो जाए और हृदय भी इस अपराध- बोध से मुक्त हो जाए l इसी मानसिक द्वन्द में वह भगवान श्रीकृष्ण के पास गए l ' कृष्ण जी ने कहा ---- ' कर्ण बड़ा शूरवीर है , तुम उसके सारथि हो l इसलिए युद्ध में तुम कर्ण को निरुत्साहित करते रहना l निरुत्साहित व्यक्ति की आधी सामर्थ्य समाप्त हो जाती है l इस तरह तुम कौरवों के पक्ष में रहते हुए भी हमारे सहयोगी बन सकते हो l ' युद्ध में शल्य ने ऐसा ही किया l अर्जुन को सामने देखकर जब कर्ण ने हुंकार भरी और कहा --- " मैं अर्जुन को आज ही समाप्त कर दम लूंगा l " तो शल्य ने कहा --- " अर्जुन को मारना टेढ़ी खीर है l अर्जुन ने इंद्र से युद्ध करना सीखा है और भगवान शंकर से धर्नुविद्दा सीखी है l वनवास के तपस्वी जीवन ने उसे बहुत मजबूत बना दिया है l तुम उसे क्या हराओगे ? शल्य इसी तरह की बात कर कर्ण को हतोत्साहित करते रहे l दूसरी ओर महावीर , महादानी कर्ण को अपने सामने देख अर्जुन ने कहा --- " भगवन ! मैं कर्ण के सामने किस प्रकार टिक सकूंगा ? " तब कृष्ण ने अर्जुन को प्रोत्साहित करते हुए कहा -- " अर्जुन ! तुम जानते हो कि कर्ण को शंकर जी का शाप है कि वह अन्य वीरों के लिए भले ही अजेय हो , पर अर्जुन के सामने उसकी धर्नुविद्दा कोई काम नहीं करेगी l कर्ण चाहे शूरवीर है किन्तु वह अधर्म , अन्याय के साथ है इसलिए उसकी पराजय निश्चित है l " भगवान कृष्ण के वचन सुनकर अर्जुन के हौसले बढ़ गए , बड़े उत्साह से उसने युद्ध किया और कर्ण को अर्जुन के हाथों परास्त होना पड़ा l
14 May 2021
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'चिंतन परिक्षेत्र बंजर हो जाने के कारण कार्य भी नागफनी , बबूल जैसे हो रहे हैं l इससे मानवता का कष्ट पीड़ित होना स्वाभाविक है l कार्य में श्रेष्ठता की अभिव्यक्ति होना तभी संभव है , जब उसके मूल में चिंतन की उत्कृष्टता हो l '--------एक बार की बात है --- राजा भोज गहरी निद्रा में सो रहे थे l उन्हें स्वप्न एक तेजस्वी वृद्ध पुरुष के दर्शन हुए l भोज ने उससे पूछा ---- ' भगवन ! आप कौन हैं ? ' वृद्ध ने कहा --- " हे राजन ! मैं सत्य हूँ l तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक स्वरुप दिखाने आया हूँ l मेरे पीछे - पीछे चला आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख l " राजा भोज अपने आपको लोक कल्याणकारी और बहुत बड़ा धर्मात्मा समझते थे , प्रसन्नता पूर्वक उस वृद्ध के पीछे चल दिए l वृद्ध पुरुष के रूप में सत्य , राजा भोज को उसकी कृतियों के पास ले गया , जिनके लिए भोज को बड़ा अहंकार था --- सर्वप्रथम वह उन्हें फल - फूलों से लदे बगीचे में ले गया l सत्य के छूते ही वे सब पेड़ ठूंठ हो गए l फिर राजा द्वारा बनवाये मंदिर आदि कृतियों की और ले गया l सत्य के छूते ही वे सब खंडहर होकर गिर गए l यह सब देख राजा जड़वत हो गया l सत्य ने कहा --- राजा विषाद मत करो , मेरे साथ आओ , मैं तुम्हे तुम्हारे कार्यों की वास्तविकता दिखाता हूँ l सत्य उन्हें उसके द्वारा किये गए लोक कल्याण के कार्यों , दान की बड़ी राशियों आदि के निकट ले गया , सत्य के छूते ही वे सब कंकड़ - पत्थर हो गईं l राजा को अपने जिन कार्यों पर अभिमान था वे सब झूठे और निष्फल साबित हुए l अपने कार्यों की ऐसी दुर्गति देख राजा हतबुद्धि होकर वहीँ बैठ गया l तब सत्य ने कहा ---- " राजन ! कर्म के राज्य में भावना का सिक्का चलता है l यश की इच्छा से , लोक दिखावे के लिए जो कार्य किये जाते हैं , उनका फल इतना ही है कि दुनिया की वाहवाही मिल जाती है l सच्ची सद्भावना से , नि:स्वार्थ होकर , कर्तव्य भाव से जो कार्य किये जाते हैं , उन्ही का पुण्य फल होता है l ' इतना कहकर वृद्ध पुरुष अंतर्धान हो गया l राजा भोज की निद्रा टूटी l वृद्ध की बातों से राजा ने समझा कि अंत:करण पवित्र होना चाहिए क्योंकि धर्म - अधर्म की जड़ मन में है , बाहर नहीं l
13 May 2021
WISDOM ----- साधनों के अभाव से मनुष्य दुःखी नहीं है , संसार के दुःख का कारण है --- भावनाओं का अभाव
इस संबंध में एक कथा है ----- नारद जी को स्वास्थ्य बहुत प्रिय था , इस लिए वे हमेशा टहलते और क्रियाशील रहते थे l एक बार वे धरती पर भ्रमण कर रहे थे , उन्होंने एक विचित्र वृक्ष देखा l इस वृक्ष में तना था , डालियाँ थीं , पर सब ठूंठ थे , एक भी पत्ती नहीं थी , हाँ , फल अवश्य थे , पर वे सब काले थे l उस वृक्ष के नीचे सैकड़ों जीव - जंतु और पक्षी मरे पड़े थे l नारद जी ने अनुमान लगा लिया कि ये फल विषैले होंगे , इन्हें खाने के प्रयास में ही ये जीव अपनी जान गँवा बैठे l अब नारद जी सीधे ब्रह्माजी के पास गए और कहा --- ' भगवन ! आपकी सृष्टि में यह विषफल l कहाँ से आया यह वृक्ष , जिसमे एक भी पत्ता नहीं है और मृत्यु - मुख में पहुँचाने वाले फल ! क्या ये कभी शीतल और मधुर नहीं हो सकते ? ' विधाता बोले ---- " तात ! बहुत दिन हुए यहाँ एक युवक आया l वह जिससे मिलता तो भक्ति और वैराग्य की बातें करता , परमार्थ की सन्मार्ग पर चलने की बात कहता l लोगों ने कहा ये पागल हो गया l उसका एक हाथ ख़राब हो चुका था , उसे पिता , भाई , पत्नी सब ने त्याग दिया l कोई उसे खाना - पानी कुछ नहीं देता , उस पर व्यंग्य करते , हँसी उड़ाते l वह सोचता कि संसार में प्रेम और दया के स्रोत न सूखें तो संसार कितना खुशहाल हो सकता है l वह युवक बहुत स्वाभिमानी था , उसने देखा जिस तरह सृष्टि के अन्य जीवों की आहार संबंधी आवश्यकताएं सीमित हैं , उसी प्रकार मनुष्य भी थोड़े में अपना काम चला सकता है और शेष समय परमार्थ में लगा सकता है l उसने अपने लिए कुछ फलों के पौधे लगाने और उनसे आहार प्राप्त करने का निश्चय किया l उसे ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास था , भूखा -प्यासा रहकर बिना किसी साधन के एक हाथ से गड्डा खोदता था l एक प्रात:काल उसने जैसे ही मिटटी का ढेला हटाया कि एक बहुमूल्य मणि का टुकड़ा उसके हाथ आ गया , वह मणि लेकर खड़ा हुआ तो लोग चौंक गए कि आज सूर्योदय समय से पहले कैसे हो गया l उसके पिता , भाई , बहिन , पत्नी सब आ गए l उसके चन्दन का लेप किया , बहुमूल्य वस्त्र पहनाये , पकवान से भरा थाल ले आये l युवक को इस मिथ्या मोह और जग - प्रपंच पर हँसी आ गई l उसने सब वस्त्र -आभूषण उतार फेंके , भोजन भी नहीं लिया और मणि लिए हुए जाने कहाँ चला गया , उस दिन से उसे किसी ने नहीं देखा l हाँ , उसका रोपा हुआ वृक्ष कुछ दिन में मीठे फल देने लगा l धीरे - धीरे उस युवक का यश सारे विश्व में गूँजने लगा और सैकड़ों लोग आ गए पहाड़ खोदने कि उन्हें भी मणि मिल जाये l मणि तो मिली नहीं एक दिन खोदते हुए बहुत बड़ा पत्थर निकल आया l सबने एकजुट होकर पत्थर हटाया तो उसके पीछे भयंकर नाग छुपा बैठा था l वह फुँकार मार कर दौड़ा , लोग भागे , उसने अधिकांश को डस लिया l भागते समय ये लोग उस वृक्ष से टकराए , उस विषधर का विष उस वृक्ष में भी व्याप गया l उस दिन से उसके सब पत्ते झड़ गए और फल विषैले हो गए l ' नारद जी ने बड़े विस्मय से पूछा ---" भगवन ! क्या यह वृक्ष फिर से हरा - भरा नहीं हो सकता ? ' ब्रह्मा जी ने कहा ---- " असंभव कुछ भी नहीं l पर आज धरती के सारे लोगों को ही स्वार्थ और प्रपंच के नाग ने डस लिया है l जितने लोग इस वृक्ष से टकराते हैं , उतने ही फल और अधिक विषैले हो जाते हैं l उस युवक की तरह कोई नि:स्वार्थ , प्रेमी संत आए और उस वृक्ष का स्पर्श करे तो यह फिर से शीतल , सुखद और मधुर फलों वाला वृक्ष बन सकता है l '