आज केवल भारत ही नहीं सारी दुनिया में भगवान राम के असंख्य भक्त है , यदि सब सच्चे होते तो धरती पर राम -राज्य होता लेकिन दुःख इस बात का है कि सभी धर्मों के लोग अपने धर्म ग्रंथों में लिखी हुई अच्छी बातों को अपने जीवन में नहीं अपनाते , उनमे यदि किसी ऐसे पात्र का चरित्र है जिसकी बुराई का परिणाम देखकर संभल जाना चाहिए तो संभालना तो दूर वह उस बुराई को बहुत जल्दी ग्रहण कर लेंगे जैसे रामायण में मंथरा ने महारानी कैकेयी के कान भर दिए , ऐसी बातें कहीं जिससे चारों भाइयों में फूट पड़ जाये और भगवान राम को वनवास हो जाये l मंथरा का स्वार्थ था कि महारानी कैकेयी राजमाता होंगी और वह उनकी प्रमुख दासी , तो उसका भी महत्व बढ़ेगा l उसकी ऐसी कुबुद्धि के कारण राम को वनवास तो हुआ लेकिन वह त्रेतायुग था , लोगों में धैर्य और विवेक था इसलिए चारों भाइयों में प्रेम बना रहा l मंथरा कई रूपों में आज भी इस धरती पर है l हमें रामायण से शिक्षा लेनी चाहिए कि कान के कच्चे न हो , किसी के भड़काने पर अपना मन मैला न करे l मानव जीवन बहुमूल्य है , बार - बार नहीं मिलता l अपनी ऊर्जा को व्यर्थ के मतभेदों में गँवाने के बजाय सकारात्मक कार्यों में नियोजित करें l
30 March 2022
WISDOM -----
संसार में अशांति और तनाव तब तक बना रहेगा जब तक धन - वैभव के आधार पर व्यक्ति और किसी राष्ट्र का मूल्यांकन किया जायेगा l धन जीवन के लिए जरुरी है , लेकिन इसे ही सब कुछ समझने की भूल ने मनुष्य की बुद्धि को विपरीत कर दिया है l अब वह अपना ही दुश्मन बन गया है , अपने ही द्वारा किये गए विकास को नष्ट कर के पत्थर - युग में जाने की तैयारी कर रहा है , -- बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद की ख्याति पूरी दुनिया में फ़ैल चुकी थी l एक दिन स्वामी जी के एक अमेरिकी शिष्य ने उनसे कहा --- " मैं आपके गुरु को देखना चाहता हूँ l मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर कैसा होगा वह व्यक्ति , जिसने आप जैसे शिष्य को तैयार किया ? " स्वामी जी ने उस अमेरिकी शिष्य को रामकृष्ण परमहंस का फोटो दिखाया l स्वामी रामकृष्ण परमहंस के फोटो के देखकर वह बोला ---- " मुझे ऐसा लगता था कि आपके गुरु अत्यंत विद्वान् व सभ्य होंगे , परन्तु फोटो से मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता l " शिष्य की बात सुनकर स्वामी जी बोले ---- " तुम्हारे देश में सभ्य पुरुषों का निर्माण दरजी करता है , जबकि हमारे देश में सभ्य पुरुषों का निर्माण आचार - विचार करते हैं l इस कसौटी पर कसकर बताओ कि तुम्हारे मुल्क के सूट - बूटधारी जेंटलमैन सभ्य हैं या मेरे गुरु परमहंस ? " वह अमेरिकी शिष्य स्वामीजी की इस व्याख्या को सुनकर निरुत्तर हो गया और उसने स्वीकार किया कि स्वामीजी के उदाहरण से उसे व्यक्तियों को परखने की नई दृष्टि मिली l