हमारे महाकाव्य 'महाभारत ' के प्रसंग हमें प्रेरित करते हैं कि अनीति से निपटना है तो ईश्वर के शरणागत हो l ऐसे भक्त का सम्पूर्ण भार भगवन स्वयं वहन करते हैं l
महाभारत की एक कथा है ---- इस युद्ध में कौरव पक्ष के अनेक महारथी मृत्यु को प्राप्त हुए , अंत में दुर्योधन बचा l भीम ने दुर्योधन को गदा युद्ध के लिए ललकारा l यह द्वंद युद्ध था --- ऐसा युद्ध जिसमे एक ही जीवित रहेगा l दुर्योधन जानता था कि उसकी माँ पतिव्रता हैं , अपने पति के अंधे होने के कारण उसने भी संकल्प ले लिया था की वह भी इन आँखों से दुनिया नहीं देखेगी और आँखों पर पट्टी बाँध ली थी l पतिव्रता नारी का जो बल था , दुर्योधन उसका एक अंश चाहता था l इस हेतु प्रार्थना करने वह माता गांधारी के पास गया l पुत्र के प्रेम वश गांधारी ने कहा ---- " तू निर्वस्त्र होकर आना , मैं आँख की पट्टी खोलूंगी , तू खड़े रहना l '
भगवान श्रीकृष्ण अन्तर्यामी थे , वे जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो दुर्योधन का समूचा शरीर वज्र का हो जायेगा l फिर इसे कोई हरा नहीं सकता l जब दुर्योधन वस्त्रहीन होकर जा रहा था , उसी समय वहां रास्ते में कृष्ण जी पहुँच गए l उन्होंने दुर्योधन से इसका कारण पूछा दुर्योधन को शर्मिंदगी महसूस हुई l भगवान ने कहा ---- ' दुर्योधन ! कुछ तो शरम करो l तुम इतने बड़े , माँ के सामने वस्त्रहीन खड़े होगे , अच्छा लगेगा क्या ? बचपन की बात और होती है l कम से कम पत्ते लपेट लो , मेरा पीताम्बर लपेट लो l "
दुर्योधन को कृष्ण की बात समझ में आ गई l वह भगवान की लीला समझ न सका l गांधारी के पास पहुंचकर प्रणाम किया l माँ ने पूछा --- ' जैसे मैंने कहा , वैसे ही आये हो तो पट्टी खोलूं l '
दुर्योधन ने हामी भरी l
गांधारी ने वर्षों से आँखों पर बंधी पट्टी खोली l दुर्योधन को देख उसकी आँखों से आंसू झरने लगे , वह भगवान की लीला को समझ गईं l कृष्ण के कहे से दुर्योधन ने जितना शरीर ढक लिया था , वह वज्र का नहीं हो पाया l अनीति का अंत तो होना ही था l बलराम का शिष्य दुर्योधन बहुत वीर था लेकिन बहुत अहंकारी था l समूचे कौरव कुल का नाश हो गया l
पांडव धर्म और नीति के मार्ग पर थे l अर्जुन भगवान की शरण में था , भगवन कृष्ण ने स्वयं उसके रथ की डोर संभाली और हर कदम पर पांडवों की रक्षा की l
महाभारत की एक कथा है ---- इस युद्ध में कौरव पक्ष के अनेक महारथी मृत्यु को प्राप्त हुए , अंत में दुर्योधन बचा l भीम ने दुर्योधन को गदा युद्ध के लिए ललकारा l यह द्वंद युद्ध था --- ऐसा युद्ध जिसमे एक ही जीवित रहेगा l दुर्योधन जानता था कि उसकी माँ पतिव्रता हैं , अपने पति के अंधे होने के कारण उसने भी संकल्प ले लिया था की वह भी इन आँखों से दुनिया नहीं देखेगी और आँखों पर पट्टी बाँध ली थी l पतिव्रता नारी का जो बल था , दुर्योधन उसका एक अंश चाहता था l इस हेतु प्रार्थना करने वह माता गांधारी के पास गया l पुत्र के प्रेम वश गांधारी ने कहा ---- " तू निर्वस्त्र होकर आना , मैं आँख की पट्टी खोलूंगी , तू खड़े रहना l '
भगवान श्रीकृष्ण अन्तर्यामी थे , वे जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो दुर्योधन का समूचा शरीर वज्र का हो जायेगा l फिर इसे कोई हरा नहीं सकता l जब दुर्योधन वस्त्रहीन होकर जा रहा था , उसी समय वहां रास्ते में कृष्ण जी पहुँच गए l उन्होंने दुर्योधन से इसका कारण पूछा दुर्योधन को शर्मिंदगी महसूस हुई l भगवान ने कहा ---- ' दुर्योधन ! कुछ तो शरम करो l तुम इतने बड़े , माँ के सामने वस्त्रहीन खड़े होगे , अच्छा लगेगा क्या ? बचपन की बात और होती है l कम से कम पत्ते लपेट लो , मेरा पीताम्बर लपेट लो l "
दुर्योधन को कृष्ण की बात समझ में आ गई l वह भगवान की लीला समझ न सका l गांधारी के पास पहुंचकर प्रणाम किया l माँ ने पूछा --- ' जैसे मैंने कहा , वैसे ही आये हो तो पट्टी खोलूं l '
दुर्योधन ने हामी भरी l
गांधारी ने वर्षों से आँखों पर बंधी पट्टी खोली l दुर्योधन को देख उसकी आँखों से आंसू झरने लगे , वह भगवान की लीला को समझ गईं l कृष्ण के कहे से दुर्योधन ने जितना शरीर ढक लिया था , वह वज्र का नहीं हो पाया l अनीति का अंत तो होना ही था l बलराम का शिष्य दुर्योधन बहुत वीर था लेकिन बहुत अहंकारी था l समूचे कौरव कुल का नाश हो गया l
पांडव धर्म और नीति के मार्ग पर थे l अर्जुन भगवान की शरण में था , भगवन कृष्ण ने स्वयं उसके रथ की डोर संभाली और हर कदम पर पांडवों की रक्षा की l
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