गरीबी अपने आप में एक अभिशाप है , वे स्वाधीन हों या पराधीन उनके सामने रोजी - रोटी की और अपने परिवार का पेट पलने की समस्या होती है l
मानसिक रूप से पराधीन वे लोग होते हैं जिनकी अतृप्त इच्छाएं होती हैं , अपनी स्थिति से अधिक ऊँची सामर्थ्य वाली वस्तुओं और वैसा जीवन जीने के लिए आतुर होते हैं l चालाक लोग मनुष्य की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर उसे अपना गुलाम बना लेते हैं l इस संबंध में एक कथा है ----- एक साहूकार था , बहुत धन था उसके पास l लेकिन उस क्षेत्र के लोग ईश्वरविश्वासी थे , सादगी का जीवन था , इसलिए उस साहूकार की खुशामद करने लोग आते नहीं थे l यह बात उसे बहुत अखरती थी l उसने अपने ही जैसे धनी लोगों के साथ मिलकर योजना बनाई और लोगों को सुख - सुविधाओं से भरा , भोग - विलास का जीवन जीने के लिए तरह - तरह के सब्जबाग दिखाए , अनेकों आकर्षण प्रस्तुत किये और कहा --मैं तुम सबको धन उधार दूंगा , तुम आराम का जीवन जियो l
सीधे - सरल लोग उसकी मंशा को समझ न सके , दूर - दूर के क्षेत्रों के लोग उससे धन उधार लेने लगे l तृष्णा कभी समाप्त नहीं होती l लोग दूसरों की नक़ल और दिखावे के जीवन के लिए उसके ऋणी हो गए l इससे साहूकार का अहंकार बहुत बढ़ गया , उसने अपना क्षेत्र बहुत बढ़ा लिया l अब क्योंकि वह लोगों की जरूरतें पूरी करने को धन देता था , इसलिए वह उन पर अपनी हुकूमत चलाने लगा l अब उस क्षेत्र में व्यवस्था न तो बुद्धि - विवेक से चलती थी न धर्म से l धन सब पर हावी हो गया l ऋण के बोझ के कारण लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी नहीं रही , उनके जीवन की उमंग ख़त्म हो गई l
तब एक संत का आगमन हुआ l उन्होंने लोगों की दयनीय स्थिति देखी , सारी परिस्थिति को समझा , फिर कहा --- तुम लोग सादगी का जीवन जियो , सादा जीवन हो , जिसमे कहीं कोई दिखावा न हो l तुम्हारे पास जो है उसमे संतुष्ट रहो , अपनी तृष्णा के लिए धन उधार न लो l ऋण के बोझ से दबे रहना भी गुलामी है l कोई व्यक्ति हो या देश जब वह अपने साधनो का सर्वोत्तम उपयोग कर के स्वाभिमान से रहेगा तभी सुख शांति से तनाव रहित जीवन का आनंद ले पायेगा l
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