जब संसार में आसुरी शक्तियां प्रबल हो जाती हैं तो वे संसार को अपनी इच्छानुसार चलाना चाहती हैं , वे स्वयं को ईश्वर से भी बड़ा समझती हैं l उनका अहंकार इतना बढ़ जाता है कि वे मनुष्य के क्रिया- कलाप पर भी अपना नियंत्रण करना चाहती हैं l जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह कृषि हो , उद्दोग , चिकित्सा , शिक्षा , कला , मनोरंजन --कोई भी क्षेत्र हो उसे वह अपनी मर्जी से चलाना चाहती हैं l आसुरी प्रवृति का मुख्य लक्षण ही अनीति और अत्याचार है , इसलिए हर क्षेत्र में शोषण , उत्पीड़न के कारण जनता त्राहि - त्राहि करने लगती है l
पुराणों में हिरण्यकश्यप की कथा आती है , वह असुर राजा था , शक्तिशाली था l वह स्वयं को ईश्वर से भी बड़ा समझता था , उसका कहना था सब उसकी पूजा करें , ईश्वर की नहीं l लेकिन उसके पुत्र प्रह्लाद ने उसकी बात नहीं मानी l प्रह्लाद ने कहा --- पितृभक्त के नाते आपकी सेवा करना , और सुख देना मेरा कर्तव्य है लेकिन आपकी अनीति और अविवेकपूर्ण बात को मैं स्वीकार नहीं करूँगा , कुमार्ग पर नहीं चलूँगा l
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को कष्ट देने में , उसे मृत्यु के मुख में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी l
कहते हैं ' जाको राखे साइंया मार सके न कोई ' असुरता यहीं पराजित हो जाती है l वह व्यक्ति की मृत्यु पर भी अपना नियंत्रण चाहती है l प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु कब , कहाँ और कैसे होगी , यह ईश्वर के हाथ में है l हिरण्यकश्यप का यह दुस्साहस भगवान को सहन नहीं हुआ और नरसिंह रूप में प्रकट होकर उन्होंने हिरण्यकश्यप को चीड़ - फाड़ के रख दिया l
पुराणों में हिरण्यकश्यप की कथा आती है , वह असुर राजा था , शक्तिशाली था l वह स्वयं को ईश्वर से भी बड़ा समझता था , उसका कहना था सब उसकी पूजा करें , ईश्वर की नहीं l लेकिन उसके पुत्र प्रह्लाद ने उसकी बात नहीं मानी l प्रह्लाद ने कहा --- पितृभक्त के नाते आपकी सेवा करना , और सुख देना मेरा कर्तव्य है लेकिन आपकी अनीति और अविवेकपूर्ण बात को मैं स्वीकार नहीं करूँगा , कुमार्ग पर नहीं चलूँगा l
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को कष्ट देने में , उसे मृत्यु के मुख में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी l
कहते हैं ' जाको राखे साइंया मार सके न कोई ' असुरता यहीं पराजित हो जाती है l वह व्यक्ति की मृत्यु पर भी अपना नियंत्रण चाहती है l प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु कब , कहाँ और कैसे होगी , यह ईश्वर के हाथ में है l हिरण्यकश्यप का यह दुस्साहस भगवान को सहन नहीं हुआ और नरसिंह रूप में प्रकट होकर उन्होंने हिरण्यकश्यप को चीड़ - फाड़ के रख दिया l
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