पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- मनुष्य तरह - तरह के कर्मकांड कर के ईश्वर को खुश करना चाहता है लेकिन भगवान की तो एक ही शर्त है --हर व्यक्ति में छिपे भगवान को पहचान कर उसकी सेवा सहायता करें l ' सांसारिक मनुष्य झूठी प्रशंसा और विभिन्न उपहारों से प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन ईश्वर सर्वशक्तिमान है , उन्हें इन सबकी जरुरत ही नहीं है l आचार्य श्री झूठी प्रशंसा पर एक कहानी बताते हैं ------ उष्ट्राणां विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्धभा: l परस्परं प्रशंसन्ति अहो रूपं अहो ध्वनि: l गधा और ऊंट दोनों के विवाह हुए l दोनों एक दूसरे के विवाह में गए l ऊंट के ब्याह में गधा गया , उसने कहा ---- " अहो रूपं l " अर्थात रूप तो आपका ही है l आपके बराबर सुन्दर रूप तो किसी का है ही नहीं l जब ऊंट गधे के ब्याह में गया तो उसने कहा --- " अहो ध्वनि: l " अर्थात आपकी जैसी ध्वनि तो बस एक कोयल की है और एक आपकी l दोनों एक दूसरे की प्रशंसा करते हैं l ' संसार में ऐसी प्रशंसा से लोगों के काम बन जाते हैं लेकिन आचार्य श्री कहते हैं ---- केवल जीभ की नोक के सहारे हम भगवान को नहीं बहका सकते l
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