कभीी ऐसा वक्त आता है कि स्वयं को विकसित , सभ्य और आधुनिक कहने वाले व्यक्ति हों या राष्ट्र हों , उनकी असलियत , उनका असली चेहरा संसार के सामने आ जाता है l जो मुखौटा लगाकर वे अपने को सर्वश्रेष्ठ बताते थे , उन्ही की गलतियों के कारण उनका यह मुखौटा खिसक गया और उनका असली चेहरा सामने आ गया l अब विद्वानों और अर्थशास्त्रियों के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई , विकसित देशों को कैसे परिभाषित करें ? जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय , राष्ट्रीय आय अधिक है और वे दूसरे देश पर आक्रमण करते हैं , लोगों का सुख - चैन छीनते हैं , निर्दोष बच्चों को भी नहीं छोड़ते , पर्यावरण प्रदूषित करते हैं , यदि यही सभ्यता का पैमाना है , विकास की परिभाषा है तो ये विकास उन्हीं को मुबारक ! हम जैसे हैं , बहुत अच्छे हैं l
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