श्रीमद् भगवद्गीता में अर्जुन ने भगवान से पूछा ---- मैं किस -किस भाव में आपको खोजूं ? कैसे देखूं ? तो भगवान कहते हैं --- उनके लिए कोई निकृष्ट - श्रेष्ठ नहीं , कोई छोटा - बड़ा नहीं l वह तो सभी में हैं , हर स्थान पर हैं l ' लेकिन भगवान को पहचाने कैसे ? भगवान कहते हैं -- जहाँ कोई व्यक्तित्व पूरी खिलावट में है वही ईश्वर है l ' आचार्य श्री लिखते हैं -- मान लो कहीं पर एक बीज पड़ा है , और वहीँ पास में एक फूल पड़ा है तो बीज को देखना कठिन है लेकिन फूल को पहचानना आसान है क्योंकि वहां पर व्यक्तित्व खिला हुआ है , सम्पूर्ण विकसित है l महाभारत की कथा है --- जब युद्ध में सभी योद्धा मारे गए तब अंत में दुर्योधन और भीम में द्वंद युद्ध होना था l दुर्योधन अपनी माँ गांधारी के तपोबल को जानता था l पतिव्रत धर्म से उन्होंने जो बल अर्जित किया था , उसका एक अंश वह चाहता था l गांधारी ने अनीति का कभी साथ नहीं दिया , लेकिन पुत्र प्रेमवश उन्होंने कहा --- " तू निर्वस्त्र होकर आ , मैं आँख की पट्टी थोड़ी देर के लिए खोलूंगी l तू खड़े रहना l " श्रीकृष्ण से कुछ छुपा नहीं है , जब दुर्योधन जा रहा था तो राह में उन्होंने उसे रोक लिया और कहा ---- " दुर्योधन ! तुम इस तरह वस्त्रहीन होकर कहाँ जा रहे हो ? उसने कहा -- माँ के पास l भगवान ने कहा --- थोड़ी तो शर्म करो l माँ के सामने तुम इतने बड़े वस्त्रहीन खड़े होगे , अच्छा लगेगा क्या ? लंगोटी लगा लो , पत्ता लपेट लो l " उसे सलाह समझ में आ गई दुर्योधन लंगोटी पहनकर माँ के सामने खड़ा हुआ , गांधारी ने आँखें खोली , देखा पूरा शरीर वज्र का नहीं हो पाया l वे श्रीकृष्ण की लीला को समझ गईं कि पुत्र का वध होगा और कुल का सर्वनाश l अनीति का ऐसा ही अंत होता है l भीम और दुर्योधन के द्वंद युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने भीम को इशारा किया कि गदा वहीँ मारनी है जो हिस्सा कमजोर है , जहाँ परमात्मा का प्रकाश नहीं है l दुर्योधन अनीति , अधर्म पर था इसलिए गांधारी के तप का तेज उसे पूर्ण रूप से नहीं मिल पाया l यही सत्य है कि नीति और सत्य की राह पर चलने वाले को ही परमात्मा का प्रकाश , उनकी कृपा मिल पाती है l
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