एक दिन राजा भोज गहरी निद्रा में सोए हुए थे l उन्हें स्वप्न में एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध पुरुष के दर्शन हुए l भोज ने उससे पूछा ----- " महात्मन ! आप कौन हैं ? " वृद्ध ने कहा ---- " राजन ! मैं सत्य हूँ l तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ l मेरे पीछे -पीछे चला आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख l " राजा उस वृद्ध के पीछे -पीछे चल दिए l राजा भोज बहुत दान , पुण्य , यज्ञ , व्रत , तीर्थ , कथा - कीर्तन करते थे , उन्होंने अनेक कुएं , मंदिर , तालाब , बगीचे आदि भी बनवाये थे l राजा के मन में इन कार्यों के कारण बहुत अभिमान आ गया था l वृद्ध पुरुष के रूप में आया सत्य राजा भोज को अपने साथ उसकी कृतियों के पास ले गया l वहां जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ , सब एक - एक कर के ठूंठ हो गए l राजा आश्चर्य चकित रह गया l इसके बाद सत्य राजा भोज को मंदिर ले गया l सत्य ने जैसे ही उसे छुआ , वह खंडहर के रूप में परिणत हो गया l वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ , तीर्थ , कथा , पूजन , दान आदि के निमित्त बने स्थानों , उपादानों , व्यक्तियों को जैसे ही छुआ , वे सब राख हो गए l राजा यह सब देखकर विक्षिप्त सा हो गया l सत्य ने कहा ---- " राजन ! यश की इच्छा से और अपने किसी स्वार्थ की पूर्ति के लिए जो कार्य किए जाते हैं , वह दिखावा है , उनसे केवल अहंकार की पुष्टि होती है l सच्ची सद्भावना से निस्स्वार्थ होकर कर्तव्य भाव से जो कार्य किए जाते हैं , उन्ही का फल पुण्य रूप में मिलता है l " इतना कहकर सत्य अन्तर्धान हो गया l राजा ने निद्रा टूटने पर स्वप्न पर गहरा विचार किया और सच्ची भावना से कर्म करना प्रारम्भ कर दिया l
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