पुराण की अनेक कथाएं हैं जो यह बताती हैं कि छल -कपट , ईर्ष्या -द्वेष , लोभ , पद का लालच , महत्वाकांक्षा ,-- ये सब बुराइयाँ केवल धरती पर ही नहीं है , स्वर्ग भी इनसे अछूता नहीं है l वहां भी षड्यंत्र , धोखा , छल है l ये कथाएं हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं कि कैसे इन विपरीत परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठाकर धैर्य और शांति से रहा जाये l -------- दैत्यकुल के राजा बलि अपनी तपस्या , भक्ति और सद्गुणों के कारण स्वर्ग में इंद्र के पद पर सुशोभित थे l देवताओं को यह बात सहन नहीं हो रही थी l उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि कोई उपाय करें जिससे महाराज बलि उस पद से हट जाएँ l जिसे बल से न हराया जा सके उसे हराने के लिए स्वर्ग में भी छल -कपट होता है l भगवान विष्णु वामन रूप धरकर बलि को छलने आए l महाराज बलि को उनके गुरु शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु के इस छल के प्रति आगाह किया , समझाया कि वे उन्हें दान न दें , परन्तु बलि ने कहा ---- " हे गुरुवर ! जब भगवान स्वयं वामन बनकर मेरे दरवाजे याचक बन कर , हाथ फैलाकर कुछ मांगने आए हैं , तो मैं उन्हें मना कैसे कर सकता हूँ ? मैं अपना दान का कर्म अवश्य पूरा करूँगा l " वामन बनकर भगवान विष्णु ने कहा --- " बलि ! दान में मुझे केवल तीन पग जमीन ही चाहिए l " जैसे ही बलि ने संकल्प लेकर कहा --- " मैं आपको तीन पग जमीन दान देता हूँ , " भगवान विष्णु ने वामन से विरत रूप धरकर दो पग में सारी धरती और आसमान नाप लिया l अब तीसरा पग कहाँ धरें ? बलि ने कहा --- अब कहाँ बताएं ? तीसरा पग मेरे सिर पर धर लो l भगवान ने उसके सिर पर पग धरकर बलि को सीधा पाताल भेज दिया l बलि ने समझ लिया कि यह तो काल चक्र की विपरीतता है l वे तो भगवान के भक्त थे l एक साधारण इनसान बनकर पाताल में भी प्रसन्न रहने लगे l परिजनों को यह मंजूर नहीं था , तब महाराज बलि ने परिजनों को काल की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहा ---- " काल की महिमा से जो अवगत होते हैं , वे उसे प्रणाम कर के स्वयं को उसके अनुकूल ढाल लेते हैं l बड़े -बड़े साम्राज्य जिनका सूर्य कभी ढलता नहीं है , उन्हें काल क्षण भर में धूल -धूसरित कर देता है l काल उठाता है तो एक तिनका भी पहाड़ बन जाता है l एक गरीब कुबेर जैसा समृद्ध , संपन्न बन जाता है l काल साथ देता है तो कठिन परिस्थितियां भी सरल हो जाती हैं l आज काल हमारे साथ नहीं खड़ा है l ऐसे विपरीत समय में कोई साधन , तप , ज्ञान काम नहीं आता l सब कुछ धरा - का -धरा रह जाता है l अत: ऐसे विपरीत समय हमें शांत और स्थिर रहना चाहिए और प्रभु द्वारा निर्धारित स्थान पर अपनी भक्ति के सहारे अनुकूल समय की प्रतीक्षा के अलावा और कोई विकल्प नहीं है l ऐसे समय कोई अपना साथ नहीं देता , केवल भगवान ही सुनते हैं l "
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