इस संसार में अंधकार है , तो प्रकाश भी है l दैवी शक्तियां हैं तो असुरता भी है l यह व्यक्ति के अपने संस्कार हैं , उसका चुनाव है कि वो अपने जिंदगी के सफ़र में आगे बढ़ने के लिए दैवी शक्तियों की मदद लेना चाहता है या आसुरी तत्वों की मदद लेता है l परिणाम निश्चित है ---असुरता को , अंधकार को मिटना ही पड़ता है l विजय हमेशा सत्य की , देवत्व की होती है l असुर अपनी सफलता के लिए तांत्रिक शक्तियों की मदद लेते हैं l पुराण की भक्त प्रह्लाद की यह कथा बताती है कि ईश्वर का नाम , उनकी भक्ति तांत्रिकों के सम्राट को भी पराजित कर देती है ------ भक्त प्रह्लाद असुरराज हिरण्यकश्यप के पुत्र थे l अपने बल , पराक्रम और कठोर तपस्या से वह स्वयं को भगवान समझने लगा था और चाहता था कि प्रह्लाद उसे ही अपना इष्ट माने , उसे ही परमात्मा मानकर पूजा करे l लेकिन प्रह्लाद का कहना था --- आप तो पिता हैं , परमपिता कैसे हो सकते हैं ? पिता तो हमारी देह के सर्जक हैं , परन्तु परमपिता तो हमारी आत्मा के सर्जक हैं l ईश्वर से बड़ा कोई नहीं l जब से प्रह्लाद ने बोलना शुरू किया हमेशा 'नारायण -नारायण जपते l यह सब देख हिरण्यकश्यप को बहुत क्रोध आया , उसने अपने पांच वर्ष के अबोध बालक को भयंकर कष्ट दिए और दैत्यगुरु , स्रष्टि के महान तांत्रिक शुक्राचार्य को प्रह्लाद को अपनी तांत्रिक क्रियाओं से वश में करने को कहा l ----- बालक प्रह्लाद अपनी माता कयाधू की गोद में लेते थे , राजवैद्यों के हर संभव इलाज के बावजूद उनका बुखार नहीं उतर रहा था , कोई दवा कारगर नहीं थी , बार -बार बेहोश हो जाते , जब थोडा सा होश आता तो नारायण -नारायण बुदबुदाते l पांच दिन बीत गए , माता कयाधू ने देवर्षि नारद को याद किया , नारद जी ने आकर प्रह्लाद को गोद लिया विष्णु भगवान की कथा सुनाई तो बालक प्रह्लाद का बुखार उतर गया और स्वस्थ हुए l तब माता कयाधू ने पूछा ---- ' हे देवर्षि ! मेरे पुत्र की बीमारी का मूल कारण क्या है ? ' तब नारद जी ने बताया --- " यह कोई रोग नहीं है l यह दैत्यगुरु शुक्राचार्य द्वारा की गई अनवरत तांत्रिक क्रियाओं का परिणाम है l " माता के यह पूछने पर कि इतने छोटे बालक से दैत्यगुरु का क्या बैर है ? नारद जी ने कहा ---- " हे देवी ! यह अहंकार सबसे खतरनाक चीज है l अहंकार विवेकरूपी आँखों पर पट्टी बांध देता है , वह अपनी शक्ति का प्रयोग अबोध बालक पर भी करने से नहीं चूकता l शुक्राचार्य को अपने तंत्र पर बड़ा गर्व है , वे तंत्र के माध्यम से प्रह्लाद के मन में यह विचार डालना चाहते थे कि वे अपने पिता को ही परमात्मा माने लेकिन प्रह्लाद ने उनकी बात नहीं मानी , वे तो विष्णु भगवान को ही हर पल याद करते , और परमात्मा मानते l इसलिए शुक्राचार्य ने उन पर मारण जैसी क्रिया का प्रयोग किया था जिससे उन्हें बुखार और शरीर में भयंकर पीड़ा हुई l आप चिंता न करें , शुक्राचार्य का बड़े से बड़ा मारक तंत्र प्रह्लाद का कुछ नहीं बिगाड़ सकता , परमात्मा के प्रति उनकी निष्ठां और भक्ति उनका सुरक्षा कवच है l " -------- आखिर वो दिन आ ही गया जब भगवान ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया l
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