गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है --- ' प्रभुता पाइ काहि मद नाहीं l ' अर्थात किसी भी तरह से धन , पद , सत्ता पाते ही व्यक्ति के अंदर अहंकार पैदा हो जाता है l शक्ति व्यक्ति को उन्मादी , अहंकारी बना देती है और वह अपनी शक्ति का दुरूपयोग करने लगता है l संसार में जब भी युद्ध हुए हैं वे शक्ति के दुरूपयोग के ही उदाहरण हैं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं कि यदि शक्ति के साथ भक्ति का समन्वय हो तो शक्ति का सदुपयोग संभव होगा l जो ईश्वर का सच्चा भक्त है वह संवेदनशील होगा l ' आज संसार में जितनी भी अराजकता , आतंकवाद , अपराध और बेगुनाह लोगों पर अत्याचार और हत्याएं हैं , इन सब समस्याओं का एकमात्र हल है ---- संवेदना l पुराण में एक कथा है ----- कौशल नरेश और काशी नरेश दोनों ही देवी के भक्त थे लेकिन दोनों का स्वभाव और विचार भिन्न थे l कौशल नरेश शक्ति की ओर आकर्षित थे लेकिन काशी नरेश की रूचि भक्ति में थी , उनके ह्रदय में संवेदना थी , प्रजा के सुख -दुःख को समझते थे l इस कारण उनकी कीर्ति चारों ओर फ़ैल रही थी l उनकी कीर्ति का विस्तार देख कौशल नरेश जल -भुन गए और उन्होंने काशी पर आक्रमण कर दिया l युद्ध में काशीराज हार गए और वन में भाग गए l अब कौशल नरेश का काशी पर कब्जा हो गया लेकिन वहां की प्रजा ने उनका स्वागत नहीं किया और काशीराज की पराजय से वहां की प्रजा दिन -रात रोने लगी l कौशल नरेश ने सोचा कि कहीं प्रजा विद्रोह न कर दे इसलिए शत्रु को समाप्त ही कर दो ल उन्होंने घोषणा करा दी कि जो काशी नरेश को ढूंढ कर लाएगा उसे सौ मोहरें दी जाएँगी l यह घोषणा सुन वहां की प्रजा ने अपने आँख -कान , मुँह सब बंद कर लिए , बहुत दुखी हो गई l इधर काशी नरेश दीन -मलिन जंगलों में भटक रहे थे l एक दिन एक पथिक उनके सामने आया और पूछने लगा --- " वनवासी ! काशी का मार्ग कौन सा है ? ' राजा ने पूछा --- " तुम्हारे वहां जाने का कारण क्या है ? " पथिक बोला --- 'मैं व्यापारी हूँ l मेरी नौका डूब गई है , अब द्वार -द्वार भीख मांगता हूँ l मैंने सुना है काशीराज बहुत दयालु हैं इसलिए कुछ मदद के लिए उनके दरवाजे जा रहा हूँ l " थोड़ी देर सोचकर उन्होंने कहा --- ' तुम बहुत परेशान हो , चलो मैं तुम्हे वहां पहुंचा दूँ l " दूसरे दिन कौशल नरेश की सभा में एक अति सामान्य वस्त्रों में एक व्यक्ति आया जिसके बाल , दाढ़ी सब बढ़े हुए थे l कौशल नरेश के पूछने पर उसने कहा ---' आपने काशीराज को पकड़ लाने वाले को सौ मोहरें देने की घोषणा की है तो आप मेरे इस साथी को सौ मोहरें दे दो , मैं ही काशीराज हूँ l ' यह सुनकर वह व्यापारी और सारी सभा सन्न रह गई , प्रहरी की आँखों में आंसू आ गए l कौशल नरेश का भी विवेक जाग गया , उन्होंने आगे बढ़कर काशीराज को ह्रदय से लगा लिया और उनके मलिन मस्तक पर मुकुट चढ़ा दिया l सारी सभा धन्य -धन्य कह उठी , व्यापारी को भी मोहरें मिल गईं l कौशल नरेश ने कहा --यह सत्य है कि शक्ति के साथ भक्ति न हो तो विवेक नहीं रह जाता l उन्होंने काशीराज को उनका राज्य वापस किया और ईश्वर से भक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की l
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