' जाके पैर न फटे बिवाई , वो क्या जाने पीर पराई l '----- यह कहानी है उस व्यक्ति की जिसका नाम था पुन्नाग , ये अपराध का पर्याय बन चुका था l पथ पर भटका हुआ कोई भी यात्री उसके रहते सुरक्षित घर नहीं पहुँच सकता था l मनुष्य हो या जानवर , पशु -पक्षी , उन्हें पीड़ित करना , मारना यही उसका काम था l उसकी एक छोटी बेटी थी --विपाशा l जब वह हुई थी तभी उसकी माँ का देहांत हो गया था l एक छोटे से हिरण के शिशु के साथ वो खेला करती थी l पुन्नाग बहुत निर्दयी था लेकिन अपनी पुत्री के लिए उसके ह्रदय में बहुत स्नेह था l वह उसे बहुत लाड़ -प्यार से रखता l विपाशा नहीं जानती थी कि कष्ट -पीड़ा क्या होती है विपाशा थोड़ी बड़ी हुई तो अपने पिता से पूछा करती थी कि आप मेरे लिए इतने वस्त्र , आभूषण आदि कहाँ से लाते है ? पुन्नाग बात को टाल जाता l धीरे -धीरे वह अपने पिता के कृत्यों को समझ गई l l एक दिन उसके हिरण ने ऐसी छलांग भरी कि उसकी टांग टूट गई , वह पीड़ा से छटपटाने लगा , चल भी नहीं पा रहा था l विपाशा ने उस दिन पहली बार पीड़ा देखी l यह पीड़ा कैसी होती है ? यह जानने के लिए उसने एक बड़े पत्थर से अपने पैर पर प्रहार किया जिससे उसके पैर की हड्डी टूट गई l अब वह पीड़ा से छटपटाने लगी l अब उसे समझ में आ गया कि उसका पिता अब तक सहस्त्रों प्राणियों को इस तरह कितनी पीड़ा दे चुका होगा , कितना तड़पाया होगा उसने l उसकी आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे l वह और उसका हिरन दोनों ही घायल अवस्था में थे , हिरण उसे चाटकर अपना प्रेम प्रकट कर रहा था l शाम हुई जब पुन्नाग वापस आया तो हमेशा की तरह विपाशा दौड़ती हुई बाहर नहीं आई l वह घबरा गया , सब तरफ देखा तो बगीचे में विपाशा और हिरन दोनों घायल पड़े थे l विपाशा को ऐसी हालत में देखकर उसका ह्रदय चीत्कार कर उठा , वह बोला --- यह तुम्हे क्या हुआ ? विपाशा ने क्षीण स्वर में कहा --- ' तात ! मैं देखना चाहती थी कि जीवों को किस तरह पीड़ा होती है , सुना है आप भी तो ऐसे ही लोगों को कष्ट दिया करते हैं l ' इतना कहते हुए वह बेहोश हो गई l अपनी बेटी का कष्ट देखकर उसे समझ आया कि पीड़ा कैसी होती है l उसने प्राणियों को कितना कष्ट दिया , वह दर्द उसे समझ में आया , उसके ह्रदय में संवेदना जाग गई l उस दिन से उसने हिंसा न करने की सौगंध ली और अपना शेष जीवन पीड़ित जानवरों और पशु -पक्षियों के उपचार और सेवा में लगा दिया l
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