आज के युग में भी संसार के अधिकांश देशों में तंत्र जैसी शक्तियों का प्रयोग किया जाता है l चाहे प्रकट रूप में इसे मान्यता न दी जाए और कहा जाए हम किसी ऐसे तंत्र आदि को नहीं मानते लेकिन ये भी सत्य है कि अपने पद -प्रतिष्ठा , वैभव, महत्वाकांक्षा और दमित आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए लोग तांत्रिक आदि का सहारा लेते हैं l लेकिन प्रश्न ये है कि ' तंत्र बड़ा या भक्ति ? ' तंत्र जैसी नकारात्मक क्रियाओं से सुरक्षा का केवल एक ही उपाय है -- ' भक्ति '--- ईश्वरीय व्यवस्था में अटूट विश्वास और उसके अनुरूप आचरण l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---' तंत्र चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो , वह भक्ति और भक्त से सदैव कमजोर होता है l भक्त की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं l पुराण की एक कथा है --------- भक्त अम्बरीश एक विशाल साम्राज्य के अधीश्वर थे लेकिन उनका मन सदैव ईश्वर की आराधना में लगा रहता था l उन्होंने अपने जीवन को भगवान श्रीकृष्ण के चरण कमलों में समर्पित कर दिया था l भोग को योग में परिवर्तित कर दिया था l उनकी अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र को उनकी रक्षा में नियुक्त कर दिया था l सुदर्शन प्रभु की अनुमति से गुप्त रूप से राजद्वार पर प्रहरी बन कर पहरा देने लगे l एक बार राजा अम्बरीश ने रानी के साथ एक वर्ष तक एकादशी के व्रत का अनुष्ठान किया l वर्ष भर विधि -विधान से पूजा हुई l अंतिम एकादशी के दूसरे दिन विधान के अनुरूप दान , पुण्य , ब्राह्मण भोज आदि हुआ l इन सब प्रक्रियाओं के बाद राजा पारायण के लिए बैठे ही थे कि ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ आ गए l राजा ने उनका सेवा -सत्कार किया और भोजन ग्रहण करने का निवेदन किया l ऋषि दुर्वासा ने इसे स्वीकार किया और कहा कि वे यमुना से स्नान आदि का आते हैं l दुर्वासा जी को देर हो रही थी और द्वादशी में केवल एक पल शेष था अत: ब्राह्मणों ने कहा कि आप श्री भगवान का चरणोदक ग्रहण कर लें अन्यथा आपका व्रत अपूर्ण रह जायेगा l राजा ने चरणोदक लेकर पारायण किया l ऋषि दुर्वासा को जब यह पता चला कि राजा ने पारायण कर लिया तो इसे उन्होंने अपना अपमान समझा , बहुत क्रोधित हुए और अपने मस्तक से जटा उखाड़कर जोर से धरती पर दे मारा l जिससे कृत्या नामक राक्षसी प्रकट हो गई और तलवार हाथ में लेकर राजा को मारने दौड़ी l ' कृत्या ' एक अभिचार कर्म है l तांत्रिक क्रिया है l सुदर्शन तो पहरे पर बैठे थे उन्होंने तुरंत कृत्या को भस्म कर दिया और अब ऋषि दुर्वासा की ओर लपके l दुर्वासा ऋषि अपनी जान बचाने के लिए दसों दिशाओं और चौदह भुवनों में भटके , कहीं सुरक्षा नहीं मिली , सुदर्शन ने उनका पीछा नहीं छोड़ा l अंत में वे दौड़ते - भागते विष्णु भगवान के पास पहुंचे l भगवान ने भी उनको सुरक्षा देने से इनकार कर दिया और कहा की यदि वे सुरक्षा चाहते हैं तो महाराज अम्बरीश की शरण में जाएँ l अंत में ऋषि दुर्वासा को राजा अम्बरीश की शरण में जाना पड़ा जिन्हें मारने के लिए उन्होंने महा भयानक तंत्र किया था l भक्ति के सामने तंत्र पराजित हुआ l
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