ऋषियों का वचन है ---- ' उदय होता सूर्य भी रक्त होता है और अस्त होते समय भी रक्त रहता है l उसी तरह बुद्धिमान सज्जनों का रूप भी विपत्ति में और संपत्ति में एक जैसा रहता है l ' संसार में जो व्यक्ति सुख -दुःख के चक्र को नहीं समझते वे सुख आने पर अहंकारी हो जाते हैं और दुःख आने पर हताश -निराश हो जाते हैं , उनका आत्मविश्वास ही समाप्त हो जाता है , आत्महत्या कर लेते हैं l लेकिन जो इस सत्य को जानते हैं कि गहरी रात के बाद सुबह अवश्य होगी , उसे कोई रोक नहीं सकता , वे अपने आत्मविश्वास पर दृढ रहते हैं , उन्हें ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास होता है और दुःख के कठिन समय में आने वाले सुनहरे पल की तैयारी करते हैं l महाभारत का प्रसंग है ---- जब पांडवों को जुए में हारने के बाद बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास मिला तब अर्जुन ने दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की , शिवजी से 'पाशुपत अस्त्र ' प्राप्त किया तब देवराज इंद्र जो अर्जुन के पिता थे अपने साथ कुछ समय के लिए स्वर्गलोक ले गए , वहां उनका मन बहलाने के लिए अप्सराओं के नृत्य का आयोजन किया l स्वर्ग की सबसे सुन्दर अप्सरा उर्वशी उन पर आसक्त हो गई और उसने अर्जुन से प्रेम -याचना की लेकिन अर्जुन ने उर्वशी की याचना को अस्वीकार कर दिया और कहा कि आपके सौन्दर्य में मैंने अपनी माँ के दर्शन किए l उर्वशी को यह अपना अपमान लगा और उसने क्रोधित होकर अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप दे दिया l तब देवराज इंद्र ने उनकी तपस्या और श्रेष्ठ चरित्र के आधार पर कहा कि यह श्राप केवल एक वर्ष के लिए जब वह चाहेंगे तब लागू होगा l यह शाप अज्ञातवस् की अवधि में पांडवों के लिए वरदान बन गया , अर्जुन ने ब्रह्न्न्ला बनकर राजा विराट की पुत्री उत्तरा और उसकी सहेलियों को नाच , गाना -बजाना सिखाया l कहाँ अर्जुन जिसके गांडीव की टंकार से धरती हिल जाती थी , विपदा के समय ऐसा रूप धरना पड़ा l महारानी द्रोपदी ने ऐसे कठिन समय में राजा विराट के रनिवास में नौकरानी बन कर सैरंध्री नाम रखकर सबकी सेवा की l वहां का सेनापति कीचक जो रानी का भाई था , रनिवास में आता -जाता था , उसकी कुद्रष्टि द्रोपदी पर थी l एक दिन जब उससे जान बचाकर द्रोपदी राजसभा की ओर भागी तब कीचक भी उनके पीछे भागा और भरी सभा में उसने द्रोपदी को ठोकर मारी , अपशब्द कहे l महारानी होकर कितना अपमान ! समय विपरीत था इसलिए सहना पड़ा l धीरे -धीरे कष्ट के दिन बीत गए l कष्ट , मान -अपमान हम सबके जीवन में आता रहता है इसलिए हमें अपने सारे रिश्तों के साथ एक रिश्ता भगवान से भी रखना चाहिए , इससे हमें शक्ति और सद्बुद्धि मिलती है l
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