'जीवन प्रसंग ---- ' बड़े काम के मोह में छोटे की अवहेलना न हो ' ----- महर्षि रमण के सत्संग में उनके विचारों से प्रभावित होकर एक युवक ने सेवा कार्यों में उनका सहायक बनने की याचना की l महर्षि ने उसे दूसरे दिन आने को कहा l वह युवक निश्चित समय पर उनसे मिलने चल दिया l थोड़ी ही दूर चला था कि एक वृद्ध स्त्री ने उसे पुकारा , उसके पास एक भारी गट्ठर था , उसने युवक से निवेदन किया कि वह उसे गट्ठर उठाने में सहायता करे l युवक ने नाक -भौं सिकोड़ते हुए कहा --- मैं जरुरी काम से जा रहा हूँ , मुझे समय नहीं है l थोडा और आगे बढ़ने पर एक वृद्ध गाड़ीवान ने उससे अनुनय की कि उसकी गाड़ी का पहिया कीचड़ में धंस गया है , यदि वह उसकी मदद कर दे तो पहिया निकल सकता है लेकिन युवक ने मना कर दिया कि उसके कपड़े ख़राब हो जायेंगे , मुझे बड़ा काम करना है , ये काम नहीं करना l थोडा और आगे चला तो उसकी आहट पाकर एक अंधी बुढ़िया ने उससे कहा --- ' बेटा ! मुझे सड़क पार उस बायीं ओर वाली झोंपड़ी तक पहुँचाने में मेरी मदद कर दो l ' युवक ने तिलमिलाकर कहा --- 'मुझे देर हो रही है , बड़ा काम करना है l ' वह शीघ्रता से महर्षि के आश्रम में पहुँच गया और बोला --- 'बताइए मेरे लिए क्या सेवा है ? ' महर्षि ने कहा --- 'थोड़ी देर बैठो , एक और व्यक्ति को भी इसी उदेश्य से आना है , उसकी प्रतीक्षा है l ' यह युवक सोचने लगा , कैसा है वो व्यक्ति जिसे समय का भी ध्यान नहीं है , वह क्या सेवा करेगा ? थोड़ी ही देर में वह व्यक्ति हांफता हुआ आ गया , उसके वस्त्र कीचड़ में सने हुए थे , महर्षि को साष्टांग प्रणाम कर विनम्रता से एक ओर खड़ा हो गया l महर्षि ने कहा --- ' कहो वत्स , शायद तुम्हे कुछ विलंब हो गया l यह हालत कैसे हुई ? ' उन व्यक्ति ने कहा --- " भगवान !वैसे तो मैं समय पर पहुँच ही जाता ,किन्तु रास्ते में एक बोझ उठाने वाली वृद्ध महिला की सहायता करने में , एक वृद्ध गाड़ीवान की गाड़ी का पहिया कीचड़ से निकालने में और एक अंधी बुढ़िया को उसकी झोंपड़ी तक पहुँचाने में विलंब हो गया l विलंब के लिए मैं क्षमा चाहता हूँ l " अब महर्षि ने पहले आने वाले नवयुवक की ओर देखा और कहा --- " वत्स ! तुम्हारी राह भी वही थी l तुम्हे सेवा के अवसर मिले लेकिन तुमने उनकी अवहेलना की l बड़े काम के मोह में तुमने यह न जाना कि छोटे -छोटे कामों का समायोग ही तो बड़ा काम है l बड़ा बनने के लिए कभी भी छोटों का तिरस्कार नहीं किया जाता l जो दूसरों का भार हलका करने में सहायक हो , जो किसी को कठिनाई से निकालने में सहायता दे और जो किसी को लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करे , वही बड़ा आदमी है l तुम अपना निर्णय स्वयं दो वत्स , क्या तुम सेवा कार्य में मेरे सहायक बन सकते हो ? " वह पहला युवक मौन था , निरुत्तर था , उसके पास कोई जवाब नहीं था l
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