श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि आसुरी स्वाभाव वाले व्यक्तियों में बाहर और भीतर की पवित्रता का तो अभाव होता ही है , इसके साथ ही वे निष्कपट , हितकर और सत्य भाषण को भी करने से विमुख होते हैं l उनमे शुचिता , श्रेष्ठ आचरण तथा सत्य भाषण का सर्वथा अभाव होता है l आसुरी प्रकृति वाले व्यक्ति उन्ही कार्यों को करते हैं जिनसे उन्हें सुख मिलता है , उनका स्वार्थ साधता है l ' महाभारत में दुर्योधन का चरित्र प्रसिद्ध है l दुर्योधन और युधिष्ठिर दोनों सहपाठी थे , दोनों को पढ़ाने वाले आचार्य भी एक ही थे l एक जैसा परिवेश मिलने पर भी युधिष्ठिर धर्म के प्रतीक हैं , सदा श्रेष्ठ आचरण करते हैं जबकि दुर्योधन सदा अधर्म , अनीति के पथ पर चलता और दुराचरण करता दीखता है l दुर्योधन को पितामह भीष्म , , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य , माता गांधारी और महात्मा विदुर का साथ मिला किन्तु उसकी अपनी कुटिल प्रवृतियां और जटिल संस्कार उसे कुमार्ग पर धकेलती रहीं , वह सारा जीवन षड्यंत्र रचता रहा l अंत में भगवान कृष्ण उसे समझाने गए और उससे धर्म व नीति की बात कही , द्वेष का पथ छोड़कर प्रेम और सद्भाव से चलने का पथ सुझाया l प्रत्युत्तर में दुर्योधन ने कहा ---- जानामि धर्म न च में प्रवृत्ति , जानामि अधर्म न च में निवृत्ति l ' " आप जो कह रहे हैं , वह धर्म मैं जानता हूँ , लेकिन उसमे मेरी प्रवृत्ति नहीं है l आप जिसे अधर्म कहते हैं , उसे भी मैं जानता हूँ , लेकिन उसे भी मैं छोड़ नहीं पाता l आसुरी प्रवृत्ति हमेशा दूसरों को दोष देते हैं , दुर्योधन भगवान से कहता है ---" लोग तो आपको अंत: करण का स्वामी , हर्षिकेश अन्तर्यामी कहते हैं l इसलिए आप ही तो मेरे ह्रदय में बैठ कर जैसा कराते हो , वैसा कर लेता हूँ l " यह सुनकर भगवान हँसने लगे l दुर्बुद्धि उस पर ऐसा हावी थी कि वह भगवान को ही बन्दी बनाने चला l
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