पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'आज के इस विज्ञान के युग में मनुष्य , ह्रदय की संवेदना एवं भक्तिभाव को भूलकर बुद्धिवादी और तर्कवादी बन गया है , स्वयं को विधाता समझ बैठा है l आज सबसे बड़ी आवश्यकता सद्बुद्धि की है l " दुर्बुद्धि के कारण ही मनुष्य अपने धन और ज्ञान का दुरूपयोग करता है l संसार में जितनी भी उथल -पुथल है , युद्ध , दंगे , हत्या , जाति और धर्म के नाम पर झगड़े l यह सब दुर्बुद्धि के कारण ही है l पुराण की एक कथा है ---- महर्षि व्यास जी एक बार अपने आश्रम में बहुत उदास और चिंतित बैठे थे l तभी नारद ही वहां आए और कहने लगे --- " महर्षि व्यास जी ! आपने अठारह पुराण , महाभारत जैसे ग्रन्थ लिखे , आप वेदज्ञ हैं फिर आपकी चिंता का कारण क्या है ? " यह सुनकर व्यास जी ने कहा ---- "हे देवर्षि ! मेरी चिंता का कारण यही है कि मैंने इतना सब कुछ लिखकर मानव को मानवता का सन्देश दिया , तो भी मनुष्य को ऐसी सद्बुद्धि नहीं मिली कि वह सुखमय जीवन जी सके l वह आज भी उसी तरह भटक रहा है और परोपकार करने के बजाय एक दूसरे को परेशान करने में लगा है l समझ में नहीं आता मैं क्या करूँ ? " तब नारद जी ने कहा --- " हे ऋषि श्रेष्ठ ! आपने पुराणों में ज्ञान -विज्ञान की बातें तो लिखी हैं , परन्तु भक्तिरस से परिपूर्ण साहित्य नहीं लिखा , अत : भक्तिरस की रचना कीजिए , जिससे जनता का कल्याण होगा और आपको भी शांति मिलेगी l " तब उन्होंने भगवान के समस्त अवतारों की लीला का वर्णन करते हुए ' भागवत पुराण ' की रचना की , जिससे जनता और व्यास जी दोनों को ही आनंद की अनुभूति हुई l
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