पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' दुर्लभ है मनुष्य का जीवन पाना l इससे भी दुर्लभ है , सम्पूर्ण स्वस्थ होना l यदि यह भी संभव हो तो दुर्लभ है , शिक्षित और विचारशील होना l यदि किसी को यह भी मिल जाए तो फिर दुर्लभ है , विज्ञानं और अध्यात्म में एक साथ आस्थावान होकर वैज्ञानिक अध्यात्म के प्रयोगों के लिए स्वयं को समर्पित करना l यदि कोई ऐसा निष्काम दिव्य जीवन जीने लगे , तो उसके स्वागत में न केवल देवदूत स्वर्ग का द्वार खोलते हैं , बल्कि स्वयं परमेश्वर अपनी बाहें पसारकर उसे स्वयं से एकाकार कर लेते हैं l " आचार्यश्री लिखते हैं ---- "इनसान के पास जो भी संपदाएं हैं , वे एक अमानत के रूप में हैं और वे इसलिए मिली हैं कि दुनिया में इस दुनिया में खुशहाली पैदा करें , इस दुनिया में शांति पैदा करें l ईश्वर ने मनुष्यों को बुद्धि दी है , और यह इसलिए मिली है कि हम इसका सदुपयोग करें l ' आचार्य श्री कहते हैं ---- हमें कम से कम भेड़ के बराबर समझदार तो होना ही चाहिए l भेड़ों से हमको नसीहत लेनी चाहिए l भेड़ अपने बदन पर ऊन पैदा करती है और इस ऊन को वह उन लोगों को मुहैया कराती है , जिन लोगों को सर्दियों में कंबल और गरम कपड़ों की जरुरत है l अपने बदन पर से वह बार -बार ऊन कटवाती है और भगवान उस ऊन का मुआवजा बार -बार देते हैं l जितनी बार ऊन काटी जाती है , उतनी ही बार नई ऊन पैदा होती चली जाती है l मनुष्य को कम से कम भेड़ जैसा तो होना ही चाहिए l उसे रीछ जैसा नहीं होना चाहिए l रीछ के बदन पर भी भगवान ने ऊन दी थी लेकिन रीछ ने अपनी ऊन किसी को नहीं दी , जो भी मांगने आया था , उसे काटने के लिए दौड़ा l इस कारण कुदरत ने उसे ऊन देना बंद कर दिया l जन्म के समय जितनी ऊन भगवान से लेकर आया , उसमें उसके अंतिम समय कोई वृद्धि नहीं होती जबकि भेड़ को प्रकृति हर बार देती है l '
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