पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' कर्तव्य की चोरी सबसे बड़ी चोरी है l ' कलियुग में कर्तव्यपालन को ही सबसे बड़ा तप कहा गया है l जो जहाँ हैं , जिस भी क्षेत्र में है , वहां अपना कर्तव्यपालन ईमानदारी से करे तो यही सबसे बड़ी पूजा है , तप है l कर्तव्य धर्म को मनीषियों ने ' ऋण से मुक्ति ' माना है l ऋण चुका दिया तो उसका कोई पुरस्कार नहीं , नहीं चुकाया तो वह अपराध है और उसका दंड मिलेगा l कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करना धर्म है , उस के लिए किसी पुरस्कार या सम्मान का दावा नहीं किया जा सकता लेकिन कर्तव्यपालन में चूक करने पर लिया गया ऋण नहीं चुकाने की तरह ही अपराध है l योग की विभिन्न साधनाएं भी तप के बिना अधूरी हैं l पहले लोग हिमालय पर जाकर , एकांत में तप किया करते थे लेकिन यदि मन को नहीं साधा गया तो वह एकांत साधना व्यर्थ है l इसलिए भगवान ने गीता में कर्मयोग को प्रधानता दी l संसार में रहकर ईमानदारी से अपना कर्तव्य करना ही सबसे बड़ा तप है l ऋषियों का कहना है --- कर्तव्यपालन में नैतिकता अनिवार्य है l कलियुग में दुर्बुद्धि का प्रकोप होने के कारण और धन -वैभव को बहुत अधिक महत्त्व देने के कारण व्यक्ति बेईमानी , भ्रष्टाचार , जालसाजी , हेराफेरी , आर्थिक , सामाजिक अपराध में लिप्त हो जाता है और इसे ही अपना कर्तव्य समझकर इसमें ही विशेषज्ञ हो जाता है l ऐसे अनैतिक और अमर्यादित कार्यों के कारण ही विभिन्न बीमारियाँ , तनाव , दुःख , पर्यावरण प्रदूषण , बड़े पैमाने पर धन-जन की हानि , आपदाएं आती हैं l प्रकृति का क्रोध कब और किस रूप में सामने आ जाए , यह कोई नहीं जानता l आचार्य श्री कहते हैं --- मनुष्य जन्म बार -बार नहीं मिलता इसलिए सन्मार्ग पर चलो , सत्कर्म कर अपने जीवन को सार्थक करो l
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