गुरु नानक देव जी के जीवन का प्रसंग है --- एक बार वे भ्रमण के दौरान जगन्नाथ पुरी जा रहे थे l वे पैदल भ्रमण करते हुए लोगों से मिलते , उनकी समस्याएं सुनते और उन्हें पीड़ा से मुक्ति दिलाने के उपाय के बताने के साथ मधुर -मंगलमय जीवन जीने की प्रेरणा देते l मार्ग में उनका सामना डाकुओं से हुआ l गुरु नानक जी के चेहरे का तेज और उनकी शांति देखकर डाकुओं ने उन्हें मालदार आदमी समझा और कहा --- ' तुम्हारे पास जो भी हीरे -मोती , सोना -चांदी है वह सब निकाल निकालकर हमें दे दो , नहीं तो हम अभी तुम्हारी हत्या कर देंगे l " गुरु नानक जी मानव मन के मर्मज्ञ थे , उन्होंने डाकुओं से कहा --- " मेरी अंतिम इच्छा यह है कि जब तुम मुझे मार दो तब मेरे शव का अंतिम संस्कार अवश्य करना l इसलिए पहले आग जलाने का प्रबंध कर लो l " यह सुनकर डाकू चकित हुए लेकिन फिर सरदार अपने दो डाकुओं के साथ लकड़ी लेने चल दिया और शेष डाकू नानक जी को घेरे रहे l l सरदार ने दूर धुंआ उड़ता देखा तो वह अपने दोनों साथियों के साथ वहां गया तो देखा गाँव के लोग एक शव का अंतिम संस्कार कर रहे हैं l कुछ लोग वहीँ खड़े बात कर रहे थे , एक व्यक्ति कह रहा था ---- " अच्छा हुआ दुष्ट , पापी , शैतान , हत्यारा मर गया , वरना यदि यह जीवित होता तो न जाने कितने और लोगों को दुःख देता , उन्हें सताता , अत्याचार करता , पीड़ा देता l " दूसरा व्यक्ति कह रहा था ---- " ऐसा अधर्मी , पापी दुष्ट , इन्सान के रूप में हैवान है शैतान है , इसका जीवन धिक्कार है ! " डाकुओं ने जब मृतक के विषय में ऐसी बातें सुनी तो उन्हें अपने दुष्कृत्य याद आने लगे , उनकी आत्मा उन्हें कचोटने लगी , बहुत पश्चाताप करने लगे l वे सोचने लगे कि जिसको हमने पकड़ के रखा है वह कोई असाधारण व्यक्ति है जिसने हमें अपनी गलतियों का एहसास कराने लकड़ियाँ लाने भेजा है l वे दौड़ते हुए आए और गुरु नानक देव के चरणों में गिर पड़े और कहने लगे --- ' आपके बताये मार्ग पर जाकर हमने जो देखा , सुना , उससे हमें हमारे बुरे कर्मों का एहसास हुआ , हमने अपने जीवन में न जाने कितने पापकर्म किए , आब आप ही हमें बताएं कि हम क्या करें जो इस पाप की जिन्दगी से छुटकारा मिले l ' गुरु नानक देव ने कहा ----- ' जो बीत गया उसे बदलना असंभव है , लेकिन अब तुम संभल जाओ और परोपकार में लग जाओ l लेकिन यह याद रखना सबको अपने कर्मों का हिसाब अवश्य देना पड़ता है l तुम्हारी वजह से किसी दुःखी इन्सान की आँखों से निकले हर एक आँसू का हिसाब तो एक =न -एक दिन देना ही होगा l हाँ , लेकिन यदि तुम दूसरों का भला करोगे , परोपकार करोगे तो तुम्हारे मन की मलिनता मिट सकती है , बुरे पापकर्म करने से जो आत्मग्लानि हुई है वह मिट सकती है और आत्म संतोष प्राप्त हो सकता है l तुम्हारे जीवन में सुख -शांति आ सकती है l " गुरु नानक जी का यह उपदेश सुनकर डाकुओं ने पापकर्म करना छोड़ दिया , उनकी जिन्दगी सदा के लिए बदल गई l
No comments:
Post a Comment