महाकाश्यप भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में से एक थे | वह जब पहली बार भगवान बुद्ध से मिलने पहुँचे तो भगवान के उनके मस्तक पर हाथ रख देने से ही उन्हें निर्वाण की प्राप्ति हो गई | यह देखकर आनंद को बड़ा आश्चर्य हुआ | उन्होंने बुद्ध से प्रश्न किया -- " भगवन ! यह व्यक्ति आज आया और आपके क्षणिक स्पर्श से मुक्त हो गया और मैं सदा आपके साथ रहता हूँ तब भी उस अवस्था को प्राप्त न कर सका , ऐसा क्यों ? "
बुद्ध ने उत्तर दिया -- " आनंद ! तुम जब मुझसे पहली बार मिले तो तुमने तीन शर्तें रखीं कि हमेशा साथ रहोगे , सदा मेरे निकट सोओगे और जिसको भी मुझसे मिलाना चाहोगे , उससे मुझे मिलना पड़ेगा | तुम्हारा समर्पण सशर्त समर्पण था और महाकाश्यप का समर्पण बिना किन्ही अपेक्षाओं के था | समर्पण शर्तों के आधार पर नहीं होता | जिस दिन तुम्हारी अपेक्षाएं छूट जायेंगी , उस दिन तुम भी उसी शून्यता को उपलब्ध हो जाओगे | " आनंद को प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था |
बुद्ध ने उत्तर दिया -- " आनंद ! तुम जब मुझसे पहली बार मिले तो तुमने तीन शर्तें रखीं कि हमेशा साथ रहोगे , सदा मेरे निकट सोओगे और जिसको भी मुझसे मिलाना चाहोगे , उससे मुझे मिलना पड़ेगा | तुम्हारा समर्पण सशर्त समर्पण था और महाकाश्यप का समर्पण बिना किन्ही अपेक्षाओं के था | समर्पण शर्तों के आधार पर नहीं होता | जिस दिन तुम्हारी अपेक्षाएं छूट जायेंगी , उस दिन तुम भी उसी शून्यता को उपलब्ध हो जाओगे | " आनंद को प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था |
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