ईश्वर का सान्निध्य और कृपा पाने के लिये हमें अहिंसा , सत्य , दया , निष्काम कर्म आदि आचरणों से स्वयं को पवित्र एवं भगवान के योग्य बनाना चाहिये | भगवान सभी के ह्रदय में समान रूप से विद्दमान हैं , इसी अनुभूति के साथ आचरण करना चाहिये |
यही एक भक्त का आचरण है |
भगवान अपने भक्त को कभी नहीं भूलते | उन्हें सदा ही इस बात का ध्यान रहता है कि उनका भक्त कहाँ है , किस मुसीबत में है | भगवान किसी महासमर्थ से अधिक समर्थ हैं | स्रष्टि की कोई
भी सामर्थ्य न तो उनका मार्ग अवरुद्ध कर सकती है और न ही उन्हें रोक सकती है | भगवान का कोई भी भक्त यदि महासंकटों से गुजरता है तो उसमे भक्तवत्सल भगवान की कोई न कोई योजना या लीला क्रियाशील होती है | इन संकटों के माध्यम से भगवान अपने प्रिय भक्त को अपनी ही भांति पवित्र बना लेते हैं |
यही एक भक्त का आचरण है |
भगवान अपने भक्त को कभी नहीं भूलते | उन्हें सदा ही इस बात का ध्यान रहता है कि उनका भक्त कहाँ है , किस मुसीबत में है | भगवान किसी महासमर्थ से अधिक समर्थ हैं | स्रष्टि की कोई
भी सामर्थ्य न तो उनका मार्ग अवरुद्ध कर सकती है और न ही उन्हें रोक सकती है | भगवान का कोई भी भक्त यदि महासंकटों से गुजरता है तो उसमे भक्तवत्सल भगवान की कोई न कोई योजना या लीला क्रियाशील होती है | इन संकटों के माध्यम से भगवान अपने प्रिय भक्त को अपनी ही भांति पवित्र बना लेते हैं |
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