पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते थे ---- ' जितने अधिक का लालच , उतना ही अधिक दुःख , उतनी ही पीड़ा , उतनी ही परेशानी l ' इसलिए उपनिषद में कहा गया है ---- लालच मत करो !
लालच केवल धन का या वस्तुओं का ही नहीं होता , मान , यश - प्रतिष्ठा , सत्ता , पद सब का लालच होता ही l लालच इस कदर बढ़ जाता है कि व्यक्ति दूसरे के सोच व स्वाभिमान पर भी कब्ज़ा जमा कर सबको अपने इशारे पर चलाना चाहता है l यह सब पाने के बाद व्यक्ति को उसका खोने का भय सताता है l इसलिए जिसकी चाहतें बड़ी हुई हैं वह कभी शांत नहीं रह पाता l अपने सुख को बचाए रखने के लिए व्यक्ति छल - कपट और षड्यंत्र करता है और अपनी असीमित इच्छाओं को पूरा करने के लिए वह दूसरों का भी हक छीनता है l यही गिद्ध - वृति है l
आचार्य श्री अपनी आँखों देखी एक घटना सुनाते थे ----- वे किसी ग्रामीण क्षेत्र से पैदल आ रहे थे l पास के बंजर मैदान में किसी जानवर का मृत शरीर पड़ा था , उसके आसपास गिद्धों का झुरमुट था जो उसका मांस नोचने में लगे थे l आपस में छीना - झपटी थी l एक गिद्ध बड़ा सा मांस का टुकड़ा लेकर भागा, थोड़ी ही दूर जा पाया कि गिद्धों की फौज उसके पीछे पड़ गई l उन गिद्धों में कुछ ताकतवर भी थे जो उसके इर्द - गिर्द व्यूह रचना करते रहे l
इस दौड़ - भाग में उस अकेले पड़े गिद्ध से मांस का टुकड़ा छूट गया जिसे दूसरे गिद्ध ने उठा लिया l अब वे सारे गिद्ध पहले वाले को छोड़कर दूसरे के पीछे पड़ गए l पहले वाला गिद्ध अब आश्वस्त था , शायद समझ गया था कि सुख संतोष में है l '
मनुष्य की इसी गिद्ध वृति के कारण संसार में अशांति है l
लालच केवल धन का या वस्तुओं का ही नहीं होता , मान , यश - प्रतिष्ठा , सत्ता , पद सब का लालच होता ही l लालच इस कदर बढ़ जाता है कि व्यक्ति दूसरे के सोच व स्वाभिमान पर भी कब्ज़ा जमा कर सबको अपने इशारे पर चलाना चाहता है l यह सब पाने के बाद व्यक्ति को उसका खोने का भय सताता है l इसलिए जिसकी चाहतें बड़ी हुई हैं वह कभी शांत नहीं रह पाता l अपने सुख को बचाए रखने के लिए व्यक्ति छल - कपट और षड्यंत्र करता है और अपनी असीमित इच्छाओं को पूरा करने के लिए वह दूसरों का भी हक छीनता है l यही गिद्ध - वृति है l
आचार्य श्री अपनी आँखों देखी एक घटना सुनाते थे ----- वे किसी ग्रामीण क्षेत्र से पैदल आ रहे थे l पास के बंजर मैदान में किसी जानवर का मृत शरीर पड़ा था , उसके आसपास गिद्धों का झुरमुट था जो उसका मांस नोचने में लगे थे l आपस में छीना - झपटी थी l एक गिद्ध बड़ा सा मांस का टुकड़ा लेकर भागा, थोड़ी ही दूर जा पाया कि गिद्धों की फौज उसके पीछे पड़ गई l उन गिद्धों में कुछ ताकतवर भी थे जो उसके इर्द - गिर्द व्यूह रचना करते रहे l
इस दौड़ - भाग में उस अकेले पड़े गिद्ध से मांस का टुकड़ा छूट गया जिसे दूसरे गिद्ध ने उठा लिया l अब वे सारे गिद्ध पहले वाले को छोड़कर दूसरे के पीछे पड़ गए l पहले वाला गिद्ध अब आश्वस्त था , शायद समझ गया था कि सुख संतोष में है l '
मनुष्य की इसी गिद्ध वृति के कारण संसार में अशांति है l
No comments:
Post a Comment