प्रसंग है -- मार्डन रिव्यू ' और ' प्रवासी ' नामक पत्रों के संपादक रामानन्द चट्टोपाध्याय के जीवन का ----- एक बार वे गंगा में नहाते हुए भँवर में फँस गए , डूबने वाले थे कि एक नवयुवक ने अपनी जान पर खेलकर उन्हें बचा लिया l उस बात को लगभग दो माह बीत गए l एक दिन वह नवयुवक अपनी एक रचना लेकर उनके पास पहुंचा l रामानंद जी ने उसका स्वागत - सत्कार किया , उनकी आँखों में कृतज्ञता का भाव था l उन्होंने आने का कारण पूछा l
युवक ने कहा कि यह रचना वह उनके पत्र में छपवाना चाहता है l उन्होंने बहुत ध्यान से उस लेख को पढ़ा , और पढ़कर उसे थमाते हुए बहुत दुःख से कहा -- यह मेरे पत्र में नहीं छप सकेगा l
युवक ने कहा --- ' क्यों नहीं छपेगा , क्या आप भूल गए कि मैं वही हूँ , वह अपनी बात पूरी करता इसके पहले रामानंदजी बोले --- ' जिसने मेरी जान बचाई l मैं आपके प्रति कृतज्ञ हूँ लेकिन यह लेख नहीं छाप सकता l तुमने मेरे प्राण बचाये , तो अब मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ , तुम मुझे गंगा में डुबो दो l ' कहने के साथ ही वे चलने को तैयार हो गए l युवक को बहुत आश्चर्य हुआ उसने कारण पूछा l
रामानंदजी ने कहा ---- ' संपादक का कर्तव्य है , जिसके तहत मेरी जिम्मेदारी है कि समाज का पथ - प्रदर्शन करूँ , मनुष्य को जीवन जीना सिखाऊं l इसकी जगह मैं उसमे पशुता , कुत्सा कैसे भड़का सकता हूँ l यह मुझसे न हो सकेगा l जीवन तो एक न एक दिन समाप्त होना है l मैं तुम्हारा ऋणी हूँ लेकिन कृतज्ञता के मोल के लिए कर्तव्य की बलि नहीं दे सकता l '
उनके विचारों से युवक के जीवन में परिवर्तन आया , उसने लेखन सीखने का निश्चय किया l
युवक ने कहा कि यह रचना वह उनके पत्र में छपवाना चाहता है l उन्होंने बहुत ध्यान से उस लेख को पढ़ा , और पढ़कर उसे थमाते हुए बहुत दुःख से कहा -- यह मेरे पत्र में नहीं छप सकेगा l
युवक ने कहा --- ' क्यों नहीं छपेगा , क्या आप भूल गए कि मैं वही हूँ , वह अपनी बात पूरी करता इसके पहले रामानंदजी बोले --- ' जिसने मेरी जान बचाई l मैं आपके प्रति कृतज्ञ हूँ लेकिन यह लेख नहीं छाप सकता l तुमने मेरे प्राण बचाये , तो अब मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ , तुम मुझे गंगा में डुबो दो l ' कहने के साथ ही वे चलने को तैयार हो गए l युवक को बहुत आश्चर्य हुआ उसने कारण पूछा l
रामानंदजी ने कहा ---- ' संपादक का कर्तव्य है , जिसके तहत मेरी जिम्मेदारी है कि समाज का पथ - प्रदर्शन करूँ , मनुष्य को जीवन जीना सिखाऊं l इसकी जगह मैं उसमे पशुता , कुत्सा कैसे भड़का सकता हूँ l यह मुझसे न हो सकेगा l जीवन तो एक न एक दिन समाप्त होना है l मैं तुम्हारा ऋणी हूँ लेकिन कृतज्ञता के मोल के लिए कर्तव्य की बलि नहीं दे सकता l '
उनके विचारों से युवक के जीवन में परिवर्तन आया , उसने लेखन सीखने का निश्चय किया l
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