पुराणों में कथा है --- भक्त प्रह्लाद की --- प्रह्लाद पांच वर्ष के थे , हर पल नारायण - नारायण का जप करते थे l इससे उनका पिता हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित होता था l वह चाहता था की प्रह्लाद भगवान विष्णु को भूल जाये और अपने पिता को ही परमात्मा मान कर उनकी पूजा करे l परन्तु प्रह्लाद न मानते थे और न डरते थे l तब हिरण्यकशिपु के कहने से असुरों के गुरु शुक्राचार्य जो दैत्य गुरु होने के साथ महान तांत्रिक भी थे , प्रह्लाद पर तांत्रिक क्रिया की l इसके पहले वे उन पर मारण क्रिया भी कर चुके थे , इससे प्रह्लाद को तेज बुखार व शरीर में पीड़ा थी l तब उनकी माता कयाधू ने देवर्षि नारद को बुलाया और कहा कि इस अबोध बालक पर इतना अत्याचार क्यों ? तब नारद जी ने कहा --- शुक्राचार्य को अपने तंत्र पर बड़ा गर्व है l वे इस तंत्र के माध्यम से सब कुछ करने का दम्भ भरते हैं l वे भूल जाते हैं कि परमात्मा की सामर्थ्य सर्वोपरि है l प्रह्लाद की परमात्मा के प्रति अनन्य निष्ठा एवं भक्ति ही उनका सुरक्षा कवच है l शुक्राचार्य का बड़े से बड़ा मारक तंत्र भी उनको डिगा नहीं सकेगा l दैत्य कुल में जन्मे प्रह्लाद की भगवान ने रक्षा की वे भक्तराज कहलाए l
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