प्राचीन समय की बात है , जब धरती विभिन्न सीमाओं में नहीं बँटी थी और सुविधानुसार योग्य व्यक्ति अपने साधनों और समझ के अनुसार एक भूभाग की देखभाल किया करते थे l प्रजा सुखी व संपन्न थी , कोई अपराध नहीं थे l वक्त बीतता गया , उस योग्य व्यक्ति को . राजा ' नाम दे दिया गया , खुशियां तब भी थीं l प्रत्येक भूभाग के धन - संपन्न व्यक्ति विभिन्न प्रशासकीय कार्यों के लिए मदद करते थे और प्रजा के हित के लिए शिक्षण संस्थाएं , अस्पताल , कुएं व पशुओं के लिए चारागाह आदि विभिन्न लोक कल्याण के कार्य करते थे l सब दिन एक से नहीं होते l विभिन्न भूभागों में से एक में एक व्यक्ति बहुत संपन्न था , उसका व्यापार दूर - दूर तक था , वह विभिन्न क्षेत्रों में लोगों की , और राजा की मदद भी करता था l इस बात का उसे बड़ा अहंकार था , वह सोचने लगा कि जब हम इतना धन सब की मदद में देते हैं तो हुकूमत भी हमारी चलनी चाहिए l उसने विभिन्न भूभाग के धनिकों से संपर्क किया और संगठन बनाकर यह निश्चय किया कि प्रत्येक भूभाग में सभी नियम - कानून उनकी सहमति और स्वीकृति से ही लागू होंगे l ऐसा करने के लिए उन्होंने अपने भूभाग के राजा को आश्वासन दिया कि यदि वे उनकी कठपुतली बन कर रहेंगे तो हमेशा गद्दी पर बने रहेंगे l एक कहावत है ---- ' तेली का काम तमोली नहीं कर सकता ' l जब व्यापार करने वाले प्रशासनिक कार्य में दखल करने लगे तब सभी नियम - कानून में उनका स्वार्थ प्रमुख हो गया l ऐसे नियम बने कि उनकी अमीरी में कमी न आए और जनता गरीब और मजबूर हो जाये ताकि उसमे विद्रोह की हिम्मत ही न रहे l अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बड़ी मछली ने छोटी मछली को निगल लिया l जो श्रम का महत्त्व समझते थे उन्हें भी आलसी बना दिया l विभिन्न भूभागों के राजा जिन्होंने सत्ता और धन के लालच में अपना स्वाभिमान गिरवी रख दिया था , धरती से उनके भी जाने के दिन आ गए लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी l श्रम से दूरी के कारण लोग आलसी और भिखारी हो गए और पेट की आग के कारण आपस में ही लड़ मरे l अराजकता और अव्यवस्था ने सब को निगल लिया और अनेक गुणों की खान वह सभ्यता और संस्कृति विभिन्न आपदाओं को सह न सकी और धूल में मिल गई l
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