पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' दीन - दुर्बल वे नहीं जो गरीब अथवा कमजोर हैं वरन वे हैं जो कौड़ियों के मोल अपने अनमोल ईमान को बेचते हैं , प्रलोभनों में फँसकर अपने व्यक्तित्व का वजन गिराते हैं l तात्कालिक लाभ देखने वाले व्यक्ति उस अदूरदर्शी मक्खी की तरह हैं , जो चासनी के लोभ को संवरण न कर पाने के कारण उसके भीतर जा गिरती है तथा बेमौत मरती है l मृत्यु शरीर की ही नहीं व्यक्तित्व की भी होती है l गिरावट भी मृत्यु है l ' लोभ , लालच , तृष्णा आदि दुर्गुणों से ग्रस्त व्यक्ति कितना ही धन , वैभव और शक्ति संपन्न हो , वह मन का दरिद्र होता है और अपनी असीमित इच्छाओं को पूरा करने के लिए वह अपना स्वाभिमान , आत्मविश्वास , अपना चरित्र सब कुछ खो देता है l
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