धर्म क्या है ? पं. श्री राम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " धर्म का मर्म है ---- अन्याय का प्रतिकार , अनीति का विरोध एवं आतंक का उन्मूलन l धर्म की सार्थकता प्रकृति और परमात्मा का साहचर्य निभाने में है और पीड़ा व पतन के निवारण में है l धर्म सद्भाव , सद्विचार एवं सत्कर्म के सम्मिलन में रहता है " l महाभारत के महायुद्ध में धर्म , अधर्म की परिभाषा बड़ी विलक्षण है l महाभारत के तीन प्रमुख पात्र हैं भीष्म पितामह --- बड़े धर्मात्मा थे , इनका जीवन पवित्रता और पावनता का प्रतीक था l गुरु द्रोणाचार्य --- ब्राह्मण थे , शस्त्र , शास्त्र के ज्ञाता ,प्रकांड विद्वान् थे l कर्ण --- महादानी और महावीर थे l प्रतिदिन प्रात: सूर्य को अर्घ्य चढ़ाया करते थे और उसके बाद उनसे कोई कुछ भी मांग ले , सहर्ष देते थे l उन्होंने अपने कवच और कुण्डल देवराज इंद्र को दान में दे दिए थे l लेकिन इन तीनो ने ही दुर्योधन के अनेक दुष्कृत्यों में से एक का भी विरोध नहीं किया l भरी सभा में द्रोपदी के चीरहरण पर भी मौन रहे , कोई प्रतिरोध नहीं किया l सामर्थ्य , शौर्य और विद्या होते हुए भी अनीति और अधर्म का साथ दिया , ऐसे व्यवहार ने उन्हें अधर्म की कसौटी पर ला खड़ा किया l अधर्म का साथ देकर वे न तो दुर्योधन की रक्षा कर सके और न ही स्वयं की रक्षा कर सके l
No comments:
Post a Comment