2 August 2022

WISDOM -----

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- अहंकार  विवेक  का  हरण  कर  लेता  है  l   इसके  चलते  सही  सोच -समझ   और  सम्यक  जीवन  द्रष्टि  समाप्त  हो  जाती  है   l  अहंकार  के  रोग  की  खास  बात   यह  है  कि   यदि  व्यक्ति  सफल   होता  जाता  है   तो  उसका  अहंकार  भी  उसी  अनुपात  में  बढ़ता  जाता  है   और  वह  एक  विशाल  चट्टान  की  भांति   जीवन  के    सत्पथ   या  आध्यात्मिक  पथ  को  रोक  लेता  है    इसके  विपरीत  यदि  व्यक्ति   असफल  हुआ  तो   उसका  अहंकार  एक  घाव  की  भांति  रिसने   व  दुःखने   लगता  है   l  '                         आचार्य श्री  लिखते  हैं  ------ सामर्थ्य  बढ़ने  के  साथ  मनुष्य  के  दायित्व  भी  बढ़ते  हैं   l  ज्ञानी  पुरुष   बढ़ती   सामर्थ्य  का  उपयोग  पीड़ितों  का  कष्ट  हरने   एवं  भटकी  मानवता  को   दिशा  दिखाने  में  करते  हैं    जबकि  अज्ञानी  उसी  सामर्थ्य  का   उपयोग   अहंकार  के  पोषण  और  दूसरों  का  अपमान   करने  के  लिए  करते  हैं   l '  दुर्योधन ,शिशुपाल ,  रावण ,  हिटलर  ऐसे  ही  उदाहरण  हैं   जिन्होंने  अपनी  सामर्थ्य  को  अत्याचार  और   लोगों  को  उत्पीड़ित  करने  में  लगा  दिया   l  

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