बलख के बादशाह के पास अपार धन -सम्पदा थी लेकिन उन्हें आत्मिक म संतोष नहीं था l धीरे -धीरे उन्हें संसार से विरक्ति होने लगी l उन्होंने अपने वजीर से कहा --- " मुझे किसी पहुंचे हुए संत के दर्शन कराने ले चलो l " बादशाह को साथ लेकर वजीर लाहौर की ओर रवाना हो गए l लाहौर के समीप जंगल में मियां मीर झोंपड़ी में रहा करते थे l उन्हें जब पता चला कि बादशाह उनके दर्शनों के लिए आ रहे हैं तो उन्होंने अपने शिष्यों को हिदायत दी कि बादशाही ठाठ -बाट वाले किसी व्यक्ति को उनके पास न आने दें l बादशाह को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपना सारा समान गरीबों में बंटवा दिया और साधारण वस्त्र पहनकर संत की कुटिया के बाहर पहुंचे l मियाँ मीर ने कहलवाया कि जंगल में एक और फ़क़ीर रहते हैं , कुछ दिन उनकी सेवा करो न , उनके जैसा जीवन जियो , तब तुम्हे दर्शन का मौका दिया जायेगा l बादशाह ने जंगल में रहकर फ़क़ीर की सेवा की और फकीर की इबादत में अपने जीवन को लगाने का निश्चय किया l मियाँ मीर ने खुश होकर बादशाह को अपना शिष्य बनाया और उन्हें आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया l मियाँ मीर के आशीर्वाद से बादशाह आगे चलकर संत बुल्लेशाह के नाम से प्रसिद्ध हुए l
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