संत तुकाराम जन्मजात शूद्र थे l उनका ईश्वर भक्ति करना तथा भक्ति गीत लिखना तात्कालिक सवर्ण पंडितों की द्रष्टि में अनुचित था और एक अपराध था l एक निकटवर्ती पंडित श्री रामेश्वर भट्ट ने उन्हें बुलाया और कहा कि तुम्हे शूद्र होने के नाते यह सब कुछ नहीं करना चाहिए l न ईश्वर भक्ति , न भजन -कीर्तन और न अभंगों की रचना l " तुकाराम अत्यंत ही सरल स्वाभाव के , बहुत ही सीधे - सरल स्वभाव के व्यक्ति थे l उन्होंने रामेश्वर भट्ट की बात स्वीकार कर ली और पूछा --- " किन्तु जो अभंग रचे जा चुके हैं , उनका क्या होगा ? " तब उस ह्रदयहीन पंडित ने कहा --- " उन्हें नदी में बहा दो l " संत तुकाराम तो अनासक्त योगी थे , उनके दबाव में उन्होंने अपने अभंगों की पोथी नदी में प्रवाहित कर दी लेकिन इससे उनका मन इतना दुःखी हो गया कि वे बिटठल मंदिर के सामने तेरह दिन तक बिना अन्न -जल ग्रहण किए पड़े रहे और सोचते रहे कि " मेरी भक्ति में कोई त्रुटि ' है , जो भगवान मुझसे प्रतिकूल हो गए हैं l दुःखी मन की पुकार निष्फल नहीं जाती l तेरहवें दिन तुकाराम को स्वप्न हुआ कि " पोथियाँ नदी किनारे पड़ी हैं , जाकर उठा ले l " तब उनके भक्तगण स्वप्न का हाल सुनकर जयघोष करते हुए गए और पोथियाँ किनारे पर से उठा लाये l
No comments:
Post a Comment