कर्म फल ---- जब गौतम बुद्ध श्रावस्ती विहार कर रहे थे तो महापाल नामक व्यापारी उनके प्रवचनों से अत्यंत प्रभावित हुआ l उसने अपना घर छोड़ दिया और बुद्ध से दीक्षा लेकर एक गाँव में कठोर साधना करने लगा l उसके साथ ऐसा कुछ हुआ कि कि उनके नेत्रों की द्रष्टि चली गई उसके बाह्य चक्षु प्रकाश विहीन हो गए l अब लोग उसे चक्षुपाल कहने लगे l तथागत चक्षुपाल के जीवन को पवित्र बताया करते थे l एक बार किसी शिष्य ने बुद्ध से पूछा ---" यदि चक्षुपाल का जीवन पवित्र है तो वह अँधा कैसे हो गया ? " बुद्ध बोले --- " पूर्व जन्म में चक्षुपाल वैद्य था l एक बार एक अंधी महिला उसके पास दवा माँगने आई और यह कहा कि यदि उसे अंधेपन से मुक्ति मिल गई तो वह उसकी दासी बनना स्वीकार कर लेगी l वैद्य की दवा से उसके नेत्र ठीक हो गए , लेकिन वचन याद आने पर उसने वैद्य से झूठ कह दिया कि नेत्र ठीक नहीं हुए हैं l वैद्य को अपनी दवा पर भरोसा था , इसलिए उसने उस झूठी स्त्री को दण्डित करने के लिए उसे अंधे हो जाने की दवा दे दी l उस दवा के प्रयोग से वह स्त्री अंधी हो गई l इसी पाप के परिणाम स्वरुप चक्षुपाल इस जन्म में अँधा हुआ है l " वैद्य का कर्तव्य और उसका धर्म है रोगी को अपनी सामर्थ्य अनुसार स्वस्थ करने का पूर्ण प्रयत्न करना l लेकिन वह अपने अहंकार और बदले की भावना से अपने धर्म से च्युत हो गया और जानबूझकर उसे गलत दवा दे दी जिसके कारण वह अंधी हो गई l इससे शिक्षा मिलती है कि हमें कभी किसी का अहित नहीं करना चाहिए l
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