एक बार रानी रासमणि के गोविन्द जी की मूर्ति पुजारी के हाथ से गिरने के कारण खंडित हो गई l रानी रासमणि ने ब्राह्मणों से इलाज पूछा l ब्राह्मणों ने खंडित मूर्ति को गंगा में विसर्जित कर नई मूर्ति बनवाने का सुझाव दिया l उनके इस सुझाव से रानी बहुत दुःखी हुईं कि जिन गोविन्द जी को इतनी श्रद्धा , भक्ति के साथ पूजा जाता रहा , उन्हें अब गंगा में विसर्जित करना पड़ेगा l उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से इस संबंध में पूछा तो वे बोले ----- "यदि आपके किसी सम्बन्धी का पैर टूट जाता तो आप उसकी चिकित्सा करवातीं या उसे नदी नदी में प्रवाहित करतीं ? रानी रासमणि उनका आशय समझ गईं l उन्होंने खंडित मूर्ति को ठीक कराया और पहले की भांति पूजा आरंभ कर दी l एक दिन किसी ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से पूछा --- " मैंने सुना है इस मूर्ति का पैर टूटा है l l" इस पर वे हंसकर बोले ---- "जो सबके टूटे को जोड़ने वल्र हैं , वे स्वयं टूटे कैसे हो सकते हैं l "
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