कहते हैं ' जब जागो तब सवेरा l ' ---यह ' जागना ' भी ईश्वर की कृपा से ही संभव है l ---- सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में महान इंद्रजालिक , महान तांत्रिक वेताल भट्ट थे l उनका समूचा जीवन शमशानों में , तांत्रिक साधनों में बीता l कूटनीतिक चक्रव्यूह हो या सेना की व्यूह रचना , प्रत्येक समस्या का समाधान वे चुटकी बजाते ही कर देते थे l बड़े से -बड़े सम्राट उनके आगे सिर झुकाते थे l लेकिन अब कई दिनों से उनके मन में एक विचार उठ रहा था कि --'ये षड्यंत्र , ये कुचक्र किसके लिए किए , जीवन भर जिन पापों का भार उठाए घुमा , उससे क्या शरीर अमर हो गया ? मनुष्य से बढ़कर काल है , कोई कितना भी ऐंठे , अकड़ दिखाए पर काल को जीतना असंभव है l मृत्यु से कोई बच नहीं पाया है l जो अपने ही गोरख धंधे में लगा रहा वह अंततः पछताया और हाथ मलता हुआ ही गया l ' उनके विवेक चक्षु खुल गए , उन्होंने राजसी परिधान उतार फेंके और साधारण वेशभूषा में प्रात: काल भगवान महाकाल को प्रणाम कर निकल पड़े l कुछ ही कदम चले कि महाकवि कालिदास कालिदास आते हुए मिले l महाकवि ने उनसे पूछा ---- ' ये क्या वेश धारण कर लिया और अब कहाँ चले ? किसका ज्योतिष बिगड़ा ? ' तब वेताल भट्ट ने कहा ----' अब अंतिम और निर्णायक युद्ध अपने आप से ही होगा , अब स्वयं को जीतना है , एक युद्ध जो हमारे भीतर है उस पर विजय प्राप्त करनी है l ' कालिदास ने कहा ---- " किन्तु आर्य ! आपके बिना अवन्तिका ( उज्जैन ) का क्या होगा ? " बेताल भट्ट ने कहा --- " यह सब मोह है ! मनुष्य अहंकार वश ऐसा सोचता है और भावी पीढ़ी की प्रगति में बाधक बनता है `l यह कहकर वेताल आगे बढ़ गए और वानप्रस्थ लेकर समाज सेवा हेतु समर्पित हो गए l
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