7 November 2022

WISDOM----

    कहते  हैं  ' जब  जागो  तब  सवेरा  l ' ---यह  ' जागना ' भी  ईश्वर  की  कृपा  से  ही  संभव  है  l  ---- सम्राट  विक्रमादित्य  के  शासन काल  में   महान  इंद्रजालिक , महान  तांत्रिक  वेताल  भट्ट  थे  l  उनका  समूचा  जीवन   शमशानों  में , तांत्रिक  साधनों  में  बीता  l   कूटनीतिक  चक्रव्यूह  हो  या  सेना  की  व्यूह  रचना  , प्रत्येक  समस्या  का  समाधान  वे  चुटकी  बजाते  ही  कर  देते  थे  l  बड़े से -बड़े  सम्राट  उनके  आगे  सिर  झुकाते  थे  l   लेकिन  अब  कई  दिनों  से  उनके  मन  में  एक  विचार  उठ  रहा  था  कि --'ये  षड्यंत्र , ये  कुचक्र  किसके  लिए  किए , जीवन  भर  जिन  पापों  का  भार  उठाए  घुमा  ,  उससे  क्या  शरीर  अमर  हो  गया  ?  मनुष्य  से  बढ़कर  काल  है  ,  कोई  कितना  भी  ऐंठे  , अकड़  दिखाए   पर  काल  को  जीतना  असंभव  है  l  मृत्यु  से  कोई  बच  नहीं  पाया  है  l  जो  अपने  ही  गोरख धंधे  में  लगा  रहा   वह  अंततः  पछताया  और  हाथ   मलता   हुआ  ही  गया  l '   उनके  विवेक  चक्षु  खुल  गए  , उन्होंने  राजसी  परिधान  उतार  फेंके   और  साधारण  वेशभूषा  में   प्रात: काल   भगवान  महाकाल  को  प्रणाम  कर  निकल  पड़े  l  कुछ  ही  कदम  चले  कि  महाकवि  कालिदास कालिदास  आते  हुए  मिले  l  महाकवि  ने  उनसे  पूछा  ---- ' ये  क्या  वेश  धारण  कर  लिया  और  अब  कहाँ  चले   ? किसका  ज्योतिष  बिगड़ा  ? '  तब  वेताल  भट्ट  ने  कहा  ----' अब  अंतिम  और  निर्णायक  युद्ध   अपने   आप   से  ही  होगा  ,  अब  स्वयं  को   जीतना  है  ,  एक  युद्ध  जो  हमारे  भीतर  है  उस  पर  विजय  प्राप्त  करनी  है  l '  कालिदास  ने  कहा ---- " किन्तु  आर्य  !  आपके  बिना  अवन्तिका ( उज्जैन  )  का  क्या  होगा  ? " बेताल  भट्ट  ने  कहा --- " यह  सब  मोह  है  ! मनुष्य  अहंकार वश   ऐसा   सोचता  है   और  भावी  पीढ़ी  की  प्रगति  में  बाधक  बनता  है  `l   यह  कहकर  वेताल  आगे  बढ़  गए  और  वानप्रस्थ  लेकर  समाज  सेवा  हेतु  समर्पित  हो  गए  l 

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