भगवान विष्णु के वैकुण्ठ धाम में भारी भीड़ लगी हुई थी l प्रभु ने आज संकल्प किया था कि वे अपने धाम से किसी को खाली हाथ नहीं जाने देंगे l सभी प्राणी उनसे भांति -भांति की संपदा मांगने में लगे थे l वैकुण्ठ का कोष रिक्त होते देख महालक्ष्मी ने भगवान विष्णु से पूछा ---" हे प्रभु ! यह सारी संपदा आप मुक्त भाव से लुटा देंगे तो वैकुण्ठ में क्या बचेगा ? यहाँ के निवासी कहाँ जाएंगे , क्या करेंगे ? " लक्ष्मी जी की बात सुनकर भगवान विष्णु मुस्कराते हुए बोले ----" देवी ! आप चिंता न करें l सब कुछ लुटाने पर भी एक निधि ऐसी है , जो मेरे पास सदा सुरक्षित रहती है l उसे यहाँ उपस्थित नर , किन्नर , गंधर्व , विद्याधर , देव और असुरों में से किसी ने नहीं माँगा l यह निधि है --- 'मन की शांति ' l ये प्राणी यह नहीं जानते कि मन की शांति के बिना समस्त धन संपदा और त्रिलोक का वैभव -विलास किसी मूल्य का नहीं है l बिना शांति प्राप्त किए यह सारी संपदा व्यर्थ सिद्ध होती है l "
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