लघु कथा ----- एक बार एक घुड़सवार एक बस्ती से होकर जा रहा था l मार्ग में एक चोर का घर पड़ा l उसके बरामदे में एक तोता पिंजरे में बंद था , जो उसे देखकर बोला --- " पकड़ो इसे , इसका सारा माल लूट लो l " थोड़ आगे बढ़ने पर उसने देखा एक झोंपड़ी है , वहां भी एक तोता पिंजरे में बंद है l यह तोता उसे देखकर बोला --- " आओ बन्धु !थक गए होंगे , थोड़ा विश्राम कर लो l " घुड़सवार को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह वहीँ बैठ गया l कुछ समय बाद उस झोंपड़ी के अन्दर से साधु निकले और उसकी कुशल -क्षेम पूछने लगे l घुड़सवार ने उन्हें सारा वृतांत कह सुनाया और उनसे दोनों तोते के भिन्न व्यवहार का कारण पूछा l साधु ने कहा --- ' यह साधुओं की वाणी सुनता है , इसलिए भला बोल रहा है और वह तोता चोर -डाकुओं की बातें सुनता है , इसलिए वैसा ही बोलता है l सत्य यही है कि अच्छाई और बुराई संगत से ही उपजती हैं l घुड़सवार को समझ में आ गया कि सत्संग से सज्जन बनते हैं और कुसंग से दुर्जन l
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