पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- 'जीवन उमंग , उत्साह एवं उदेश्य से परिभाषित होता है , उम्र से नहीं l जीवन में उत्साह बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे l व्यक्ति जितना कार्य अपने शरीर से करता है , उससे कई गुना कार्य वह अपने मन से करता है l यदि मन की शक्तियां ही कमजोर पड़ गईं हैं , तो फिर जरूरत है उन्हें जगाने की l " ------- एक कथा है ------ एक राजा के पास कई हाथी थे , लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था , बहुत आज्ञाकारी , समझदार एवं युद्ध कौशल में निपुण था l बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय श्री दिलाकर वापस लौटा था l इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था l उसकी भी जब वृद्धावस्था आ गई तो वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता था इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में नहीं भेजते थे l एक दिन वह सरोवर में जल पीने गया तो वहां कीचड़ में उसका पैर धंस गया l उस हाथी ने बहुत कोशिश की स्वयं को बाहर निकालने की , लेकिन वह धंसता ही जा रहा था l उसके चिंघाड़ने की आवाज सुनकर बहुत लोग वहां आ गए , अनेक पहलवान और सैनिक उसे निकालने का प्रयत्न करने लगे लेकिन कोई सफलता नहीं मिली l राजा ने हाथी के वृद्ध महावत को बुलाया l महावत ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और राजा से कहा ---' सरोवर के चारों ओर युद्ध के नगाड़े बजाएं जाएँ l सुनने वालों को बड़ा विचित्र लगा कि जब व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से फँसा हुआ हाथी बाहर नहीं निकला तो भला नगाड़े की आवाज से कैसे बाहर निकलेगा l लेकिन आश्चर्य ! जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारम्भ हुए , मृतप्राय हाथी के हाव -भाव में परिवर्तन आने लगा और धीरे -धीरे कोशिश कर के वह स्वयं ही कीचड़ से बाहर आ गया l महावत ने बताया कि वह हाथी युद्ध में अनेकों बार गया है और नगाड़े की आवाज से परिचित है , इस आवाज को सुनकर उसकी चेतना जाग गई , वह उत्साह -उमंग से भर गया कि राजा को युद्ध के लिए उसकी जरुरत है और यह विचार आते ही वह जोश के साथ बाहर आ गया l आचार्य श्री लिखते हैं ---- यदि हमारे मन में एक बार उत्साह -उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वत: ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं है l
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