श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- जो मान -अपमान , निंदा -प्रशंसा में सम रहता हैं , इनसे विचलित नहीं होता , ऐसा भक्त मुझे प्रिय है l ' ऐसी स्थिति तभी संभव है जब व्यक्ति में अहंकार न हो l यदि अहंकार होगा तो मान -सम्मान मिलने पर व्यक्ति के अहंकार को पोषण मिलेगा , वह और अहंकारी हो जायेगा l इसके विपरीत यदि निंदा और अपमान मिलता है तो अहंकार पर चोट पहुँचती है और पोषण न मिलने पर यही अहंकार घाव की भांति रिसने लगता है l इसलिए भगवान हमें समझाते हैं कि यदि हम अपने अहंकार को छोड़ दें तो मान -अपमान स्वत: ही समाप्त हो जाएंगे अर्थात लोग अपना काम करते रहेंगे , हमें अपमानित करें या प्रशंसा करे , हमारा मन विचलित नहीं होगा l अहंकार समाप्त होते ही हम में न तो मान पाने की लालसा रहेगी और न ही अपमानित होने का भय सताएगा l -------- ----------------स्वामी रामतीर्थ अमेरिका प्रव्रज्या हेतु गये थे l उनका उद्बोधन प्रसिद्द चिंतकों व विचारकों के मध्य हुआ तो सभी ने एक स्वर से उनके अद्भुत व्यक्तित्व और प्रकांड पांडित्य की प्रशंसा की l उद्बोधन के पश्चात् वे जिस महिला के घर रुके हुए थे , उनके घर पहुंचे और उस महिला से बोले ---- " बहन ! आज ईश्वर ने इस नाचीज को अन्यथा ही बहुत प्रशंसा दिलवाई l " कुछ दिनों उपरांत वे न्यूयार्क के ब्रौंक्स क्षेत्र से गुजर रहे थे कि उनकी वेशभूषा को देखकर कुछ अराजक तत्वों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया , उन पर छींटाकशी करने लगे l घटना की खबर जब उस महिला को लगी तो वो कुछ साथियों को लेकर स्वामीजी को लेने पहुंची l स्वामी रामतीर्थ उसी निर्विकार भाव से बोले ---- " बहन ! आप हस्तक्षेप न करो l आज ईश्वर का अपने इस भक्त को अपमान से भेंट कराने का मन है l भगवान के भक्त के लिए मान क्या और अपमान क्या ? " श्रीमद् भगवद्गीता में जिस स्थितप्रज्ञ का वर्णन है , उस स्वरुप का दर्शन उनमें सबको उन क्षणों में हुआ l
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