पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " हमारे पूर्वजों ने छूत -अछूत का भेद , अच्छे -बुरे कर्मों के आधार पर बनाया था l जन्म से कोई छूत -अछूत नहीं होता l " उच्च कुल में जन्म लेकर भी यदि व्यक्ति छल , कपट , धोखा , षडयंत्र , अत्याचार और नकारात्मक शक्तियों के साथ काम करता है तो वह व्यक्ति अछूत है , ऐसे व्यक्ति की छाया से भी बचना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों के संस्कार , उनकी मानसिकता दूषित होती है इसलिए उनकी संगत से बचना चाहिए l एक कथा है -------- एक महात्मा प्रतिदिन जेल जाते और एक बंदी को उपनिषद पढ़ाया करते l वह बंदी काल कोठरी में था लेकिन उपनिषद का ज्ञान उसकी आत्मा में ऐसे समा गया कि उसके जीवन में आनंद और शांति थी l महात्मा उसे नियमपूर्वक उपनिषद पढ़ाने जाते थे l एक दिन महात्मा ने देखा कि उनके शिष्य के चहरे पर प्रसन्नता नहीं है l महात्मा ने उससे पूछा कि उपनिषद पढ़कर भी मन में शांति क्यों नहीं है ? तब बंदी ने कहा कि उसने रात्रि में एक भयानक स्वप्न देखा , जिसमें वह निर्ममता से अपने किसी प्रिय की हत्या कर रहा है l बंदी ने कहा कि इस स्वप्न की वजह से ही वह बहुत परेशान है l तब महात्मा जी ने उससे उसकी पूरी दिनचर्या के बारे में पूछा कि वह किस से मिला था , क्या खाया था ? फिर महात्मा जी ने बंदीगृह के अधिकारी से पूछा ---- " क्या कल किसी नए बंदी ने भोजन पकाया था ? " अधिकारी ने कहा --' हाँ ' और उस बंदी का रिकार्ड मंगाकर देखा तो पता चला कि उस बंदी ने जिसने खाना बनाया था , उसने अपने प्रिय की हत्या उसी निर्ममता से की थी जैसा कि उस उपनिषद पढने वाले बंदी ने स्वप्न में देखा था l तब महात्मा ने अपने शिष्य को कहा --- ' व्यक्ति के दूषित मानसिक संस्कार के स्पर्श मात्र से उस भोजन में वह दूषित संस्कार आ गए l उस भोजन को ग्रहण करने से ही उसे ऐसा स्वप्न आया l तब महात्मा जी की सलाह पर उस बंदी को खाना बनाने के काम से हटाकर अन्य कोई काम दिया गया l
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