इस संसार में गुरु की कृपा से सब कुछ संभव है l कहते हैं यदि भगवान शिव स्वयं रूठ जाएँ तो श्री गुरु की कृपा से रक्षा हो जाती है , लेकिन यदि गुरु रूठ जाएँ तो कोई भी रक्षा करने में समर्थ नहीं होता l सद्गुरु के बताए मार्ग पर चलकर , बिना किसी तर्क के उनके आदेश को स्वीकार कर के ही गुरु कृपा संभव है l जो शिष्य अपने गुरु की कृपा की छाँव में रहता है , उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता l एक सत्य घटना है बंगाल के महान साधक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के बारे में l वे सर्वेयर के पद पर कार्यरत थे l पारिवारिक परिस्थिति कुछ ऐसी हुई कि पहले बेटी की मृत्यु हुई , फिर लंबी बीमारी के बाद पत्नी की मृत्यु हो गई l सुरेन्द्रनाथ बहुत दुःखी थे , ऐसे में उन्होंने बंगाल के महान संत सूर्यानंदगिरी की शरण में रहना चाहा l इस उदेश्य से वे उन महान संत की कुटिया में गए और उनसे दीक्षा देने की प्रार्थना की l इस प्रार्थना को सुनकर संन्यासी महाराज नाराज हो गए और उन्हें डपटते हुए बोले --- " आज तक तुमने सत्कर्म किया है , जो मेरा शिष्य बनना चाहते हो l जाओ पहले सत्कर्म करो l " इस झिड़की को सुनकर सुरेन्द्रनाथ विचलित नहीं हुए और बोले --- " आज्ञा दीजिए महाराज l " संत सूर्यानंदगिरी ने कहा ---- " इस संसार में पीड़ित मनुष्यों की संख्या कम नहीं है l उन पीड़ितों की सेवा करो l " सुरेन्द्रनाथ ने कहा ---- " जो आज्ञा प्रभु l मैंने सम्पूर्ण अंतस से आपको गुरु माना है l आपके द्वारा कहा गया प्रत्येक वाक्य , प्रत्येक अक्षर मेरे लिए मूल मन्त्र है l ऐसा कहकर सुरेंद्र्नाथ कलकत्ता आ गए और अभावग्रस्त , , लाचार व दुःखी मनुष्य की सेवा करने लगे l निराश्रितों के सिरहाने बैठकर उनकी सेवा करते वे गरीबों के मसीहा बन गए l जब अपने पास की सारी रकम समाप्त हो गई तो जिस गली का नाम उनके पिता के नाम पर था , उसी गली में वे कुली का काम करने लगे l इससे जो आमदनी होती उससे वे अपाहिजों की सहायता करते l ऐसा करते कई वर्ष गुजर गए l इस अवधि में उनकी उन संत से कोई मुलाकात नहीं हुई l एक दिन जब वे कुली का काम कर के जूट मिल से बाहर निकले तो देखा सामने गुरुदेव खड़े हैं l आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा --- " सुरेन्द्र तुम्हारी परीक्षा समाप्त हो गई , अब मेरे साथ चलो l " इस आदेश को शिरोधार्य कर के वे चुपचाप गुरु के पीछे -पीछे चल पड़े गुरुदेव उन्हें बंगाल , आसाम पार कराते बर्मा के जंगलों में ले गए , यहीं उनकी साधना का क्रम शुरू हुआ l गुरु कृपा से वे महान सिद्ध संत महानंद गिरी के नाम से प्रसिद्ध हुए l
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