यदि आप अपना उत्थान चाहते हो तो उसका प्रयत्न स्वयं करो ।दूसरा कोई भी आपकी दशा सुधार नहीं सकता ।यह लोक और परलोक किसी दूसरे की कृपा द्रष्टि से सफल नहीं हो सकता ।अपने पेट के पचाये बिना अन्न हजम नहीं हो सकता ,अपनी आँखों की सहायता के बिना दृश्य दिखाई नहीं पड़ सकते ,अपने मरे बिना स्वर्ग को देखा नहीं जा सकता ,इसी प्रकार अपने प्रयत्न बिना उन्नत अवस्था को भी प्राप्त नहीं किया जा सकता ।समर्थता को ओजस ,मनस्विता को तेजस ,और जीवट को वर्चस कहते हैं ।यही वे दिव्य सम्पदाएँ हैं जिनके बदले संसार के हाट -बाज़ार से कुछ भी ख़रीदा जा सकता है ।
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