प्रजापति ब्रह्मा ने वृक्ष बनाये ,वनस्पति बनाई ,छोटे -छोटे जीव -जंतु बनाए ,पशु और पक्षी बनाए और जब देखा कि इनमे से एक भी पर्यावरण को व्यवस्थित रख सकने में समर्थ नहीं है ,हर जीव खुदगर्ज साबित हुआ ,तब विधाता ने सम्पूर्ण प्रतिभा और ज्ञान संपन्न मनुष्य का निर्माण किया ।मनुष्य को अपने समान क्षमतावान देखकर विधाता की चिंता दूर हुई ,संसार की व्यवस्था मनुष्य को सौंपकर वे अपनी थकावट मिटाने के लिए शयन करने लगे ।एक हजार वर्ष की नींद टूटी तो विधाता ने देखा कि द्वार पर जीव -जंतुओं की भारी भीड़ जमा है ।विधाता को जगाने और अपनी शिकायत पेश करने के लिए सब दरवाजा खटखटा रहे हैं ,नारे लगा रहे हैं ।चकित विधाता दरवाजा खोलकर बाहर निकले और जीव -जंतुओं से उनके दुःख का कारण पूछा ।जीवों के प्रमुख प्रतिनिधियों ने बताया -भगवन !आपने मनुष्य को बनाया था स्रष्टि की व्यवस्था के लिए ,पर यह हम सबको ही सताए और नष्ट किये डाल रहा है ।स्रष्टि का सौंदर्य नष्ट होता देखकर विधाता बहुत चिंतित हुए और बोले -बच्चे दुःख न करो ,मनुष्य ने अपनी सद्बुद्धि को दुर्बुद्धि में बदलकर आप लोगों का उतना अहित नहीं किया ,जितना अपना पतन किया है ।जाओ कुछ दिन और प्रतीक्षा करो ,एक दिन उसकी यह दुर्बुद्धि ही उसे पशुवत जीवन में ले जाएगी ,तब वह स्वयं अनुभव करेगा कि यदि -हम भी पशुओं की तरह ही जीवन जीते हैं ,तो मनुष्य शरीर पाने का क्या लाभ ?यह ज्ञान ही उसे पश्चाताप और सुधार की प्रेरणा देगा ,तभी सुख -शांति स्थापित होगी ।वह स्वयं ही गिरा है तथा उठेगा भी स्वयं ही ।
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