उत्कृष्टता , श्रेष्ठता के प्रति श्रद्धापूर्ण समपर्ण एक उदात्त आध्यात्मिक भावना है जो किसी क्षेत्र के लिये अनवरत शक्ति संचार की प्रेरणा एवं स्रोत बनकर काम करने लगती है ।
समर्पण का अर्थ है--- ' मन अपना , विचार इष्ट के , ह्रदय अपना , भावनाएं इष्ट की
आपा अपना किंतु समग्र रूप से इष्ट का ।
अंत:करण में न कोई छल है न छद्म , अपनी बौद्धिक क्षमताएं , सक्रियता , प्रगति सब ध्येय के प्रति अर्पित हों , यही सच्ची साधना है ।
यह सौभाग्य जिन प्रयोजनों के लिये मिल जाते हैं , चाहें वह सांसारिक हो या आध्यात्मिक उनकी सफलता की आधी मंजिल तत्काल पूर्ण हो जाती है । साथ ही उस समर्पित आत्मा को ईश्वर सान्निध्य का ऐसा दिव्य लाभ इसी साधना से मिल जाता है जिसके लिये योगाभ्यास और कठिन व लंबी साधना पूरी करनी पड़ती हैं ।
सतप्रवृतियों , उच्च आदर्शों को समर्पित जीवन का अर्थ है -- परमात्मा को समर्पित जीवन ।
प्रभु समर्पित व्यक्ति का प्रत्येक चिंतन और कार्य एक ही दिशा में नियोजित रहने से अत्याधिक प्रखर और गतिशील हो उठता है । यही नहीं उसके साथ पवित्रता की ऐसी भावना सन्निहित रहती है , जो ध्येय को भौतिक प्रवंचनाओं से धराशायी होने से बचाती है ।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना तांत्याटोपे के जीवन से संबंधित है । अजीजान नाम की एक नर्तकी सेनापति तांत्याटोपे की ओर आसक्त हो गई । उसने तांत्या का मन जीतने के लिये आकर्षणों का जाल बिछा दिया । वे उसके मन की बात भांप गये । उन्होंने एक दिन अजीजान से कहा --" मेरे जीवन का एक ही ध्येय है - अंग्रेजों को भारत भूमि से मार भगाना । यदि सचमुच तुम मुझसे प्यार करती हो तो मेरे इस श्रेष्ठ लक्ष्य में तुम्हे समर्पित होना पड़ेगा । " अजीजान तैयार हो गई । किंतु समर्पण इतनी सरल प्रक्रिया नहीं है कि उसे यों ही निबाहा जा सके
अजीजान ने अपनी सारी सम्पति स्वाधीनता संग्राम को लगा दी । स्वयं को गुप्तचर सेवाओं के लिये समर्पित किया । अंग्रेजों की छावनियों में जाना , वहां के सुराग लाना जोखिम भरा कार्य था , जिसे अविचल निष्ठा ही पूरी कर सकती थी । अजीजान को भी भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ा , किंतु वह ध्येय के प्रति अविचल बनी रही । समर्पण की पवित्रता ने उसके ह्रदय की वासना को भी धो दिया ।
समर्पण से ही व्यक्ति की निष्ठा परखी जाती है । इसमें खरा उतरने पर ही उसका समर्पण सार्थक होता है ।
समर्पण का अर्थ है--- ' मन अपना , विचार इष्ट के , ह्रदय अपना , भावनाएं इष्ट की
आपा अपना किंतु समग्र रूप से इष्ट का ।
अंत:करण में न कोई छल है न छद्म , अपनी बौद्धिक क्षमताएं , सक्रियता , प्रगति सब ध्येय के प्रति अर्पित हों , यही सच्ची साधना है ।
यह सौभाग्य जिन प्रयोजनों के लिये मिल जाते हैं , चाहें वह सांसारिक हो या आध्यात्मिक उनकी सफलता की आधी मंजिल तत्काल पूर्ण हो जाती है । साथ ही उस समर्पित आत्मा को ईश्वर सान्निध्य का ऐसा दिव्य लाभ इसी साधना से मिल जाता है जिसके लिये योगाभ्यास और कठिन व लंबी साधना पूरी करनी पड़ती हैं ।
सतप्रवृतियों , उच्च आदर्शों को समर्पित जीवन का अर्थ है -- परमात्मा को समर्पित जीवन ।
प्रभु समर्पित व्यक्ति का प्रत्येक चिंतन और कार्य एक ही दिशा में नियोजित रहने से अत्याधिक प्रखर और गतिशील हो उठता है । यही नहीं उसके साथ पवित्रता की ऐसी भावना सन्निहित रहती है , जो ध्येय को भौतिक प्रवंचनाओं से धराशायी होने से बचाती है ।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना तांत्याटोपे के जीवन से संबंधित है । अजीजान नाम की एक नर्तकी सेनापति तांत्याटोपे की ओर आसक्त हो गई । उसने तांत्या का मन जीतने के लिये आकर्षणों का जाल बिछा दिया । वे उसके मन की बात भांप गये । उन्होंने एक दिन अजीजान से कहा --" मेरे जीवन का एक ही ध्येय है - अंग्रेजों को भारत भूमि से मार भगाना । यदि सचमुच तुम मुझसे प्यार करती हो तो मेरे इस श्रेष्ठ लक्ष्य में तुम्हे समर्पित होना पड़ेगा । " अजीजान तैयार हो गई । किंतु समर्पण इतनी सरल प्रक्रिया नहीं है कि उसे यों ही निबाहा जा सके
अजीजान ने अपनी सारी सम्पति स्वाधीनता संग्राम को लगा दी । स्वयं को गुप्तचर सेवाओं के लिये समर्पित किया । अंग्रेजों की छावनियों में जाना , वहां के सुराग लाना जोखिम भरा कार्य था , जिसे अविचल निष्ठा ही पूरी कर सकती थी । अजीजान को भी भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ा , किंतु वह ध्येय के प्रति अविचल बनी रही । समर्पण की पवित्रता ने उसके ह्रदय की वासना को भी धो दिया ।
समर्पण से ही व्यक्ति की निष्ठा परखी जाती है । इसमें खरा उतरने पर ही उसका समर्पण सार्थक होता है ।
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