हम सबके भीतर खुशियों का खजाना छिपा हुआ है, जिसे हम सब उम्र भर बाहर खोजते रहते हैं ।
खुशियाँ चाहते हो ? तो इन्हें बाह्य परिस्थिति में नहीं आंतरिक मन: स्थिति में ढूँढो ।
एक भिखारी था, वह जिंदगी भर एक ही जगह पर बैठकर भीख माँगता रहा । उसकी इच्छा थी कि वह भी धनवान बने, इसलिये वह दिन में ही नहीं रात में भी भीख माँगता था । जो कुछ उसे भीख में मिलता, उसे खर्च करने के बजाय जोड़ता रहता । लेकिन वह धनवान नहीं बन सका ।
वह भिखारी की तरह जिया और भिखारी की तरह मरा । उसके मर जाने के बाद आस-पास के उसका झोंपड़ा तोड़ दिया । फिर सबने मिलकर वहां की जमीन साफ की । सफाई करने वाले इन सभी को तब भारी अचरज हुआ, जब उन्हें उस जगह पर बड़ा भारी खजाना गड़ा हुआ मिला ।
यह ठीक वही जगह थी, जिस जगह पर बैठकर वह भिखारी जिंदगी भर भीख माँगा करता था ।
जहाँ पर वह बैठता था, उसके ठीक नीचे यह भारी खजाना गड़ा हुआ था ।
जो खुशियों की तलाश में बाहर भटकते हैं, उनकी हालत भी कुछ ऐसी ही है । बड़े से बड़े खोजियों ने सारी दुनिया में, सारी उम्र भटक कर अंतत: यह खुशियों का खजाना अपने ही अंदर पाया है ।
' जो कुछ ईश्वर ने हमें दिया, हम उसके लिये खुश होना सीखें । '
खुशियाँ चाहते हो ? तो इन्हें बाह्य परिस्थिति में नहीं आंतरिक मन: स्थिति में ढूँढो ।
एक भिखारी था, वह जिंदगी भर एक ही जगह पर बैठकर भीख माँगता रहा । उसकी इच्छा थी कि वह भी धनवान बने, इसलिये वह दिन में ही नहीं रात में भी भीख माँगता था । जो कुछ उसे भीख में मिलता, उसे खर्च करने के बजाय जोड़ता रहता । लेकिन वह धनवान नहीं बन सका ।
वह भिखारी की तरह जिया और भिखारी की तरह मरा । उसके मर जाने के बाद आस-पास के उसका झोंपड़ा तोड़ दिया । फिर सबने मिलकर वहां की जमीन साफ की । सफाई करने वाले इन सभी को तब भारी अचरज हुआ, जब उन्हें उस जगह पर बड़ा भारी खजाना गड़ा हुआ मिला ।
यह ठीक वही जगह थी, जिस जगह पर बैठकर वह भिखारी जिंदगी भर भीख माँगा करता था ।
जहाँ पर वह बैठता था, उसके ठीक नीचे यह भारी खजाना गड़ा हुआ था ।
जो खुशियों की तलाश में बाहर भटकते हैं, उनकी हालत भी कुछ ऐसी ही है । बड़े से बड़े खोजियों ने सारी दुनिया में, सारी उम्र भटक कर अंतत: यह खुशियों का खजाना अपने ही अंदर पाया है ।
' जो कुछ ईश्वर ने हमें दिया, हम उसके लिये खुश होना सीखें । '
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