समाजतंत्र में नीतिनिष्ठा को जीवित रखने के लिये सामाजिक अनुशासन की आवश्यकता है
पारस्परिक चर्चा के दौरान मंत्री ने राजा से कहा--- " यदि अवसर मिले तो कोई चालाकी से चूकता नहीं । अवसर मिलते ही लोग धूर्तता का अवलंबन लेते हैं । "
राजा ने कहा-- " इसका अर्थ यह हुआ कि संसार में भलमनसाहत है ही नहीं । " मंत्री ने कहा ---
" है तो, पर उसे जीवित और सुरक्षित तभी रखा जा सकता है, जब सामाजिक नियंत्रण व रोकथाम का समुचित प्रबंध हो । छूट मिले तो कदाचित ही कोई बेईमानी से चूके । "
बात राजा के गले न उतरी । मंत्री ने अपनी बात का प्रमाण देने के लिये एक उपाय किया------
प्रजा में घोषणा कराई गई कि किसी राज-काज के लिये हजार मन दूध की आवश्यकता है । अत: सभी प्रजाजन रात्रि के समय खुले पार्क में रखे कड़ाहों में एक-एक लोटा दूध डाल जायें ।
रात्रि के समय पार्क में बड़े-बड़े कड़ाह रख दिये गये और चौकीदारी का कोई प्रबंध नहीं किया गया । स्थिति का पता कानो-कान सभी को लग गया । रात्रि का समय और चौकीदारी का न होना, इन दो कारणों का लाभ उठाकर प्रजाजनों ने दूध के स्थान पर पानी डालना आरंभ कर दिया । यह सोचकर कि इतने लोटे दूध होगा तो हमारे एक लोटे पानी का किसी को पता भी न चलेगा । सभी ने एक ही तरह सोचा और अपने हिस्से के दूध के बदले पानी डाला ।
दूसरे दिन मंत्री राजा को दूध का कड़ाह दिखाने ले गये । सभी पानी से भरे हुए थे । दूध का नाम तक नहीं था ।
राजा ने उस दिन समझा कि समाज में नैतिकता को जीवित बनाये रखने के लिये नियंत्रण और अनुशासन आवश्यक है ।
पारस्परिक चर्चा के दौरान मंत्री ने राजा से कहा--- " यदि अवसर मिले तो कोई चालाकी से चूकता नहीं । अवसर मिलते ही लोग धूर्तता का अवलंबन लेते हैं । "
राजा ने कहा-- " इसका अर्थ यह हुआ कि संसार में भलमनसाहत है ही नहीं । " मंत्री ने कहा ---
" है तो, पर उसे जीवित और सुरक्षित तभी रखा जा सकता है, जब सामाजिक नियंत्रण व रोकथाम का समुचित प्रबंध हो । छूट मिले तो कदाचित ही कोई बेईमानी से चूके । "
बात राजा के गले न उतरी । मंत्री ने अपनी बात का प्रमाण देने के लिये एक उपाय किया------
प्रजा में घोषणा कराई गई कि किसी राज-काज के लिये हजार मन दूध की आवश्यकता है । अत: सभी प्रजाजन रात्रि के समय खुले पार्क में रखे कड़ाहों में एक-एक लोटा दूध डाल जायें ।
रात्रि के समय पार्क में बड़े-बड़े कड़ाह रख दिये गये और चौकीदारी का कोई प्रबंध नहीं किया गया । स्थिति का पता कानो-कान सभी को लग गया । रात्रि का समय और चौकीदारी का न होना, इन दो कारणों का लाभ उठाकर प्रजाजनों ने दूध के स्थान पर पानी डालना आरंभ कर दिया । यह सोचकर कि इतने लोटे दूध होगा तो हमारे एक लोटे पानी का किसी को पता भी न चलेगा । सभी ने एक ही तरह सोचा और अपने हिस्से के दूध के बदले पानी डाला ।
दूसरे दिन मंत्री राजा को दूध का कड़ाह दिखाने ले गये । सभी पानी से भरे हुए थे । दूध का नाम तक नहीं था ।
राजा ने उस दिन समझा कि समाज में नैतिकता को जीवित बनाये रखने के लिये नियंत्रण और अनुशासन आवश्यक है ।
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