बात उन दिनों की है जब रूस और जापान में युद्ध चल रहा था । जापानी सेना की कमान जनरल कोडामा के हाथ में थी । वातावरण कुछ शांत था, जापानी सैनिक कुछ देर के लिये विश्राम कर रहे थे । रूसियों ने अनुकूल स्थिति देखकर अपनी संपूर्ण शक्ति लगाकर जापानी कैंम्पो पर हमला कर दिया । जनरल कोडामा ने सैनिकों को धैर्य और वीरता के साथ जवाबी हमले के लिए तैयार हो जाने को कहा ।
रूस के अप्रत्याशित आक्रमण से जापानी कैम्प बुरी तरह घिर गये थे, सैनिकों का बचना कठिन था
कोडामा के सहकारी जनरलों ने धुंए के गोलों से संकरी गली बनाकर जनरल कोडामा को बचाकर ले जाने का प्रबंध किया और एक अधिकारी को कोडामा के पास भेजकर आग्रह किया कि वे सुरक्षित स्थान पर चलें जायें ।
जनरल ने द्रढ़ता से कहा--- " नहीं ऐसा नहीं हो सकता । अपने सैनिकों को असुरक्षित छोड़कर मैं भाग नहीं सकता । मुझे अपने बीच न पाकर उनका साहस टूट जायेगा फिर मैं परमात्मा को क्या उत्तर दूंगा । देशवासियों ने मेरी योग्यता और कर्तव्यनिष्ठा पर विश्वास कर यह पद मुझे दिया । मैं अपने आप से, अपने ईश्वर और अपने देशवासियों के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता । जाओ, अपना मोर्चा संभालो, यह समय बात का नहीं, काम का है ।
दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ । सच्चाई और कर्तव्यनिष्ठा की जीत हुई, यह मोर्चा भी जापानियों के हाथ रहा । उन्होंने सैनिकों को समझाया कि कर्तव्य छोटा हो या बड़ा, उसकी अवहेलना करना परमात्मा का अनादर और उसकी आज्ञाओं की उपेक्षा करना है, हमें अपने पथ से विचलित नहीं होना चाहिए ।
रूस के अप्रत्याशित आक्रमण से जापानी कैम्प बुरी तरह घिर गये थे, सैनिकों का बचना कठिन था
कोडामा के सहकारी जनरलों ने धुंए के गोलों से संकरी गली बनाकर जनरल कोडामा को बचाकर ले जाने का प्रबंध किया और एक अधिकारी को कोडामा के पास भेजकर आग्रह किया कि वे सुरक्षित स्थान पर चलें जायें ।
जनरल ने द्रढ़ता से कहा--- " नहीं ऐसा नहीं हो सकता । अपने सैनिकों को असुरक्षित छोड़कर मैं भाग नहीं सकता । मुझे अपने बीच न पाकर उनका साहस टूट जायेगा फिर मैं परमात्मा को क्या उत्तर दूंगा । देशवासियों ने मेरी योग्यता और कर्तव्यनिष्ठा पर विश्वास कर यह पद मुझे दिया । मैं अपने आप से, अपने ईश्वर और अपने देशवासियों के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता । जाओ, अपना मोर्चा संभालो, यह समय बात का नहीं, काम का है ।
दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ । सच्चाई और कर्तव्यनिष्ठा की जीत हुई, यह मोर्चा भी जापानियों के हाथ रहा । उन्होंने सैनिकों को समझाया कि कर्तव्य छोटा हो या बड़ा, उसकी अवहेलना करना परमात्मा का अनादर और उसकी आज्ञाओं की उपेक्षा करना है, हमें अपने पथ से विचलित नहीं होना चाहिए ।
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