एक दिन महर्षि कण्व अपने शिष्य कौत्स के साथ भ्रमण को निकले । मार्ग में महर्षि को आश्रम से संबंधित कुछ कार्य स्मरण हुआ तो उन्होंने कौत्स को वापस लौटने की आज्ञा दी । रास्ते में कौत्स को भयंकर दर्द से पीड़ित सुंदर स्त्री दिखाई पड़ी, पर वे उसे अनदेखा कर आश्रम चले गये । कुछ समय पश्चात महर्षि कण्व भी उसी मार्ग से निकले तो उस स्त्री को पीड़ा से कराहते देख उसे अपने साथ आश्रम ले आये और उसके उपचार आदि की व्यवस्था की । स्त्री ने उन्हें यह भी बताया कि कौत्स उसे अनदेखा कर निकल गये थे ।
महर्षि ने कौत्स को बुलाकर पूछा--- " वत्स ! तुम्हे मार्ग में यह पीड़ित स्त्री मिली तो तुमने उसकी सहायता क्यों नहीं की ? "
कौत्स ने उत्तर दिया--- " गुरुवर ! मुझे भय था कि कहीं मैं उसके सौन्दर्य से विचलित होकर धर्मभ्रष्ट न हो जाऊं । "
महर्षि बोले--- " पुत्र ! दूसरे की पीड़ा का निवारण करना ही सबसे बड़ा धर्म है । और क्या सौन्दर्य से भागने से तुम्हे उससे विरक्ति हो जायेगी, छिपा हुआ भाव कभी भी प्रकट हो सकता है । वासना शमन का एकमात्र उपाय है कि वैसे ही वातावरण में रहकर आत्मनियंत्रण का अभ्यास करना । जैसा सूखे में तैरना नहीं सीखा जा सकता, वैसे ही आत्मनियंत्रण का अभ्यास एकांत में नहीं हो सकता | "
महर्षि ने कौत्स को बुलाकर पूछा--- " वत्स ! तुम्हे मार्ग में यह पीड़ित स्त्री मिली तो तुमने उसकी सहायता क्यों नहीं की ? "
कौत्स ने उत्तर दिया--- " गुरुवर ! मुझे भय था कि कहीं मैं उसके सौन्दर्य से विचलित होकर धर्मभ्रष्ट न हो जाऊं । "
महर्षि बोले--- " पुत्र ! दूसरे की पीड़ा का निवारण करना ही सबसे बड़ा धर्म है । और क्या सौन्दर्य से भागने से तुम्हे उससे विरक्ति हो जायेगी, छिपा हुआ भाव कभी भी प्रकट हो सकता है । वासना शमन का एकमात्र उपाय है कि वैसे ही वातावरण में रहकर आत्मनियंत्रण का अभ्यास करना । जैसा सूखे में तैरना नहीं सीखा जा सकता, वैसे ही आत्मनियंत्रण का अभ्यास एकांत में नहीं हो सकता | "
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