काल से बलवान कोई नहीं होता l काल किसी का नहीं होता , काल चक्र में सब बंधे हैं l
काल की विपरीत चाल थी कि स्वयं भगवती सीता को रावण जैसे असुर की चाल का शिकार होना पड़ा और अवतारी राम को वन - वन भटकना पड़ा l भगवान राम के तरकश में एक ही तीर पर्याप्त था रावण का शिरोच्छेद कर धराशायी करने में l इतने दिव्यास्त्रों से सुसज्जित भगवान राम को काल की प्रतीक्षा करनी पड़ी और तभी आततायी रावण का अंत संभव हो सका l विपरीत एवं अंधकार की घड़ियाँ हमारे धैर्य की परीक्षा लेने आती हैं कि हम प्रकाश के प्रति कितने प्रयत्नशील हैं ' तमसो मा ज्योतिर्गमय '
महापराक्रमी , महाबलशाली पांडव , जिनके पास दिव्य अस्त्र - शस्त्रों का भंडार था , दैवी वरदान एवं अनुदान से जिनकी झोली भरी पड़ी थी , स्वयं भगवान कृष्ण जिनके सखा - संबंधी थे , उनको भी बुरे समय की मार और चौदह वर्ष का अति कष्टसाध्य वनवास झेलना पड़ा l स्वयं भगवान भी उनके इस विपरीत समय को टाल न सके l
वे धैर्यपूर्वक विपरीत घड़ी के गुजर जाने की प्रतीक्षा एक कर्मयोगी की तरह करते रहे l इस अंधकार की अवधि में निरंतर तप तथा संघर्ष से अपनी शक्ति को बढ़ाया और ठीक समय आने पर अपने ऊपर ढहाए गए सभी जुल्मों और अत्याचार का बदला लिया l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- विपरीत परिस्थितियों में हमें शांत - संयत होकर अनगिनत अपमान , तिरस्कार , उपेक्षा आदि को असीम धैर्य के साथ सहन करते हुए एक कर्मयोगी की भांति अपना कर्तव्यपालन करते रहना चाहिए l बुरे समय के बाद आने वाला अच्छा समय हमारा होता है और फिर उस समय हम अपराजेय होते हैं l
काल की विपरीत चाल थी कि स्वयं भगवती सीता को रावण जैसे असुर की चाल का शिकार होना पड़ा और अवतारी राम को वन - वन भटकना पड़ा l भगवान राम के तरकश में एक ही तीर पर्याप्त था रावण का शिरोच्छेद कर धराशायी करने में l इतने दिव्यास्त्रों से सुसज्जित भगवान राम को काल की प्रतीक्षा करनी पड़ी और तभी आततायी रावण का अंत संभव हो सका l विपरीत एवं अंधकार की घड़ियाँ हमारे धैर्य की परीक्षा लेने आती हैं कि हम प्रकाश के प्रति कितने प्रयत्नशील हैं ' तमसो मा ज्योतिर्गमय '
महापराक्रमी , महाबलशाली पांडव , जिनके पास दिव्य अस्त्र - शस्त्रों का भंडार था , दैवी वरदान एवं अनुदान से जिनकी झोली भरी पड़ी थी , स्वयं भगवान कृष्ण जिनके सखा - संबंधी थे , उनको भी बुरे समय की मार और चौदह वर्ष का अति कष्टसाध्य वनवास झेलना पड़ा l स्वयं भगवान भी उनके इस विपरीत समय को टाल न सके l
वे धैर्यपूर्वक विपरीत घड़ी के गुजर जाने की प्रतीक्षा एक कर्मयोगी की तरह करते रहे l इस अंधकार की अवधि में निरंतर तप तथा संघर्ष से अपनी शक्ति को बढ़ाया और ठीक समय आने पर अपने ऊपर ढहाए गए सभी जुल्मों और अत्याचार का बदला लिया l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- विपरीत परिस्थितियों में हमें शांत - संयत होकर अनगिनत अपमान , तिरस्कार , उपेक्षा आदि को असीम धैर्य के साथ सहन करते हुए एक कर्मयोगी की भांति अपना कर्तव्यपालन करते रहना चाहिए l बुरे समय के बाद आने वाला अच्छा समय हमारा होता है और फिर उस समय हम अपराजेय होते हैं l
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